Wednesday, January 30, 2013

तमाम विरासत को अपने में संजोये उत्तर प्रदेश के तराई का एक छोटा सा जिला "पीलीभीत" जनपद

जनपद पीलीभीत उत्तरी पूर्व भाग के तराई भाग के तराई क्षेत्र मे लगभग 28.30 उत्तरी अक्षांश एवं पूर्वी देशांतर से 28.37 पूर्वी देशांतर तक फैला हुआ है उत्तर मे जिला उधमसिंह नगर एवं नेपाल राज्य, दक्षिण मे जिला शांहजहाँपुर पूरब मे जिला खीरी पश्चिम मे जिला बरेली है पीलीभीत जनपद का क्षेत्रफल 3765.7 वर्ग किमी है इस प्रमुख नदी शारदा, गोमती, देवहा, खकरा कैलाश है
पीलीभीत के नाम की उत्पत्ति मे भी अनिश्चितता है लेकिन खकरा नदी के उत्तर पूर्व न्यूरिया मार्ग पर खकरा नदी के किनारे पुराना पीलीभीत गाँव अब भी है यह गाँव हमेशा से ही पेरिया कुल के बंजारो के अधिपत्य मे रहा इसी कारण इसे पेरियाभीत माना जाता है कुछ लोग इसे पीली दीवार का नगर मानते हुए इसे पीलीभीत कहते है
सम्वत् 1659 विक्रमी मे हुक्मचंद्र लवानियां ने यहाँ के मुण्डिया ग्राम का विस्तार जो इलाका आबाद किया वह पीलीभीत कहलाया
हाफ़िज़ रहमत खाँ ही पीलीभीत के वास्तविक निर्माता है इन्होने कई वर्षो तक इसे अपनी राजधानी बनाया पीलीभीत का नाम हाफिजबाद रखा गया हाफ़िज़ रहमत खाँ के बाद यह क्षेत्र अवध के नवाब के अधीन हो गया सन् 1800 मे रूहेलखण्ड के क्षेत्र को अंग्रेज़ो को दे दिया नवम्बर 1879 तक पीलीभीत जिला बरेली का उपखण्ड था, जिसकी तहसील जहानाबाद थी मशहूर शायर शरुर जहानाबादी यही पैदा हुए हिन्दुओ ने कस्बे के पास ही महादेव का मंदिर बनवाया दक्षिण मे मनुकामना  नाम का प्राचीन स्थान है किवदंती के अनुसार आल्हा ऊदल यही आकर रुके थे
जहानाबाद नगर से कुछ दूरी पर विलई खेङा अपने मे प्राचीन सभ्यता का इतिहास संजोए हुए है चक्रवर्ती सम्राट राज वेन के किले के अवशेष एक टीले के रूप मे है जहाँ से टूटी फूटी मूर्तियाँ, वर्तन धातु के सिक्के मिल रहे है
पीलीभीत जनपद मे विभिन्न ऐतिहासिक
इमारते ऐतिहासिक स्थल
राजा बालि का महल का टीला - राजा बालि के गवा ध्वज परसुआ ग्वाल की अटारी या महल का टीला 1400 फीट लम्बा 300 फीट चौङा और 35 फीट ऊँचा है यहाँ राजा बालि द्वारा बनवाया हुआ प्रासिद्ध चक्र सरोवर है यहाँ भगवान के सुदर्शन चक्र ने जल मे समाधि ली थी

राधा रमण का मन्दिरवर्ष 1896 मे इस मन्दिर का निर्माण हुआ यह मन्दिर वृंदावन के शैली मे ही पत्थर से बना है मन्दिर मे राधाकृष्ण की मूर्ति विराजमान है       
 
मैनाकोट पूरनपुर मे ही कलीनगर के पास ऐतिहासिक मैना कोट मे रानी मैनरा की गढ़ी है जंगल मे रानी का किला है और काँच का एक कुँआ था किवदंती के अनुसार चने के पौधे मे रानी का विछुआँ उलझ गया था इस कारण रानी ने श्राप दे दिया जिससे इस क्षेत्र मे चना नही होता है रानी मैनरा द्वारा 56000 हजार गायों को पानी पीने के लिए एक सागर ताल बनाया गया सागर ताल खस्ता हाल मे है रानी इसी ताल के पास सती हुई थी

राजा वेणु का किला पूरनपुर मे शाहगढ़ स्टेशन से लगभग 1 किमी दूर एक टीला है जहाँ कभी राजा वेणु का महल था राजा वेणु से लक्ष्मी के रूठने, खूंटी द्वारा हार निगल जाने तथा सात कन्याओ के इधर उधर हो जाने की कहानियाँ जन मानस मे प्रचलित है शाहगढ़ टीला सात देवियो की जन्म भूमि के रूप मे प्रासिद्ध है
इलाबॉसपीलीभीत की बीसलपुर तहसील मे इलाबॉस गाँव मे देवी जी का प्राचीन मंदिर है यह मंदिर 12वी शताब्दी का निर्मित है  
   
मोरध्वज का किला पीलीभीत जनपद की बीसलपुर तहसील स्थित बिलसण्डा करवा के निकट मरौरी ग्राम के पुराने महल भग्नाविशेष है जन श्रुति के अनुसार यहाँ राजा मोरध्वज का किला बताया जाता है इस तिले के पास अष्टकोण का तालाब भी है
 
बाबा दुर्गानाथ का मन्दिर माधोटांडा के पास बाबा दुर्गानाथ की समाधि पर स्थित मन्दिर दुर्गानाथ का मन्दिर कहलाता है यहाँ एक सिद्ध योगी दुर्गानाथ रहते थे उनको गंगा म्य्या द्वारा प्रतिदिन गंगा स्नान करने का वरदान प्राप्त था उसके बाद उनकी कुटिया के निकट गंगा की प्रवाह मान धारा प्रकट हुई जिससे वह प्रतिदिन स्नान करने लगे आज यह स्थल गोमती उद्गम स्थल माना जाता है
 
शाही जामा मस्जिदपीलीभीत मे दिल्ली की शाही जामा मस्जिद की तर्ज पर रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने इस मस्जिद का निर्माण सन् 1766-67 मे करवाया था इसका निर्माण कच्ची ईट तथा सुर्खी चुना मसाले से हुआ इसकी नीव स्वयं रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने रखी थी सबसे पहले इमाम हाफ़िज़ नुरूद्दीन गजनवी थे
  
दरगाह हजरत शाहजी मियांकुतबे पीलीभीत हजरत हाजी शाहजी मोहम्मद शेर मियां रहमतुल्ला अलैह की दरगाह नगर के उत्तर दिशा मे स्थित है यहाँ मजार पर चादर चढ़ाने से दिल से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है
 
गौरी शंकर मन्दिर - गौरी शंकर मन्दिर लगभग 250 साल पुराना यह मन्दिर पीलीभीत मे स्थित है पूरब दक्षिण मे दो दरवाजे है जिसका निर्माण रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने कराया था यह मुख्य मन्दिर गौरी शंकर का है इस मन्दिर का शिवलिंग पुरातत्व विभाग द्वारा 2000 वर्ष पुराना माना गया है इस शिवलिंग का रंग लाल है शिवलिंग पर पार्वती तथा शिव जी के आधे- आधे रूप बने हुए है एक विशाल अद् भुत द्वार है जिसे रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने 1770 मे बनवाया था
 
जयसंतरी देवी का मन्दिर इसका इतिहास 300 वर्ष पुराना है किवदंती के अनुसार यहां पहले नकटा नाम का दानव रहता था जो इस रास्ते से गुजरता था तो दानव उसे खा जाता था उसी रास्ते से एक बार जयसंतरी देवी गुजरी जिससे देवी ने उस दानव का वध कर दिया उस राक्षस को खोजा गया तो वह मन्दिर से कुछ दूरी पर पाया गया उसकी नाक कटी हुई थी उस स्थान को नकटा दाना चौराहा कहा जाता है                
दूधिया मन्दिर मन्दिर काफी पुराना है इस मन्दिर मे दूध के समान श्वेत शिवलिंग बना हुआ है। सावन के महीने मे इस मंदिर पर मेला लगता है
 
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा छेबी पातशाही प्राचीन समय मे यह गुरुद्वारा एक धर्मशाला के रूप मे था श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ नियमित रूप से होता था श्री हर गोविंद साहिब जी पंजाब से नानकमत्ता साहिब की यात्रा के दौरान इस धर्मशाला मे रुके थे

मथोडिस्ट चर्च नगर के मोहल्ला खाकरा मे 100 बर्ष से अधिक पुराना मथोडिस्ट चर्च इसथित है यहाँ प्रति बर्ष क्रिसमस डे अन्य ईसाई पर्व पर बड़े इस्तर पर प्रार्थना सभा का आयोजन होता है
 
पौराणिक ताल लिलहरबिल्सण्डा वामरौली मार्ग के निकट प्राचीन गाँव लिलहर है चैत्र की अमावस्या को यहाँ मेला लगता है राजा मोरधव्ज के एक भाई नीलध्वज को कोड रोग से पीड़ित था एक बार वह अपने काफिले से इसी स्थान पर आए यहाँ एक पोखर था पोखर के पानी से हाथ का कोड ठीक हो गया

कमल कुमार राठौर
पीलीभीत

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