जनपद पीलीभीत उत्तरी पूर्व भाग के तराई भाग के तराई क्षेत्र मे लगभग 28.30 उत्तरी अक्षांश एवं पूर्वी देशांतर से 28.37 पूर्वी देशांतर तक फैला हुआ है । उत्तर मे जिला उधमसिंह नगर एवं नेपाल राज्य, दक्षिण मे जिला शांहजहाँपुर पूरब मे जिला खीरी पश्चिम मे जिला बरेली है । पीलीभीत जनपद का क्षेत्रफल 3765.7 वर्ग किमी है । इस प्रमुख नदी शारदा, गोमती, देवहा, खकरा व कैलाश है ।
पीलीभीत के नाम की उत्पत्ति मे भी अनिश्चितता है । लेकिन खकरा नदी के उत्तर पूर्व न्यूरिया मार्ग पर खकरा नदी के किनारे पुराना पीलीभीत गाँव अब भी है । यह गाँव हमेशा से ही पेरिया कुल के बंजारो के अधिपत्य मे रहा इसी कारण इसे पेरियाभीत माना जाता है । कुछ लोग इसे पीली दीवार का नगर मानते हुए इसे पीलीभीत कहते है ।
सम्वत् 1659 विक्रमी मे हुक्मचंद्र लवानियां ने यहाँ के मुण्डिया ग्राम का विस्तार जो इलाका आबाद किया वह पीलीभीत कहलाया ।
हाफ़िज़ रहमत खाँ ही पीलीभीत के वास्तविक निर्माता है । इन्होने कई वर्षो तक इसे अपनी राजधानी बनाया । पीलीभीत का नाम हाफिजबाद रखा गया । हाफ़िज़ रहमत खाँ के बाद यह क्षेत्र अवध के नवाब के अधीन हो गया । सन् 1800 मे रूहेलखण्ड के क्षेत्र को अंग्रेज़ो को दे दिया । नवम्बर 1879 तक पीलीभीत जिला बरेली का उपखण्ड था, जिसकी तहसील जहानाबाद थी । मशहूर शायर शरुर जहानाबादी यही पैदा हुए । हिन्दुओ ने कस्बे के पास ही महादेव का मंदिर बनवाया दक्षिण मे मनुकामना नाम का प्राचीन स्थान है । किवदंती के अनुसार आल्हा ऊदल यही आकर रुके थे ।
जहानाबाद नगर से कुछ दूरी पर विलई खेङा अपने मे प्राचीन सभ्यता का इतिहास संजोए हुए है । चक्रवर्ती सम्राट राज वेन के किले के अवशेष एक टीले के रूप मे है । जहाँ से टूटी फूटी मूर्तियाँ, वर्तन व धातु के सिक्के मिल रहे है ।
पीलीभीत जनपद मे विभिन्न ऐतिहासिक
इमारते व ऐतिहासिक स्थल
राजा बालि का महल का टीला - राजा बालि के गवा ध्वज परसुआ ग्वाल की अटारी या महल का टीला 1400 फीट लम्बा 300 फीट चौङा और 35 फीट ऊँचा है । यहाँ राजा बालि द्वारा बनवाया हुआ प्रासिद्ध चक्र सरोवर है । यहाँ भगवान के सुदर्शन चक्र ने जल मे समाधि ली थी ।
राधा रमण का मन्दिर – वर्ष 1896 मे इस मन्दिर का निर्माण हुआ यह मन्दिर वृंदावन के शैली मे ही पत्थर से बना है । मन्दिर मे राधाकृष्ण की मूर्ति विराजमान है ।
मैनाकोट – पूरनपुर मे ही कलीनगर के पास ऐतिहासिक मैना कोट मे रानी मैनरा की गढ़ी है । जंगल मे रानी का किला है । और काँच का एक कुँआ था । किवदंती के अनुसार चने के पौधे मे रानी का विछुआँ उलझ गया था । इस कारण रानी ने श्राप दे दिया । जिससे इस क्षेत्र मे चना नही होता है । रानी मैनरा द्वारा 56000 हजार गायों को पानी पीने के लिए एक सागर ताल बनाया गया सागर ताल खस्ता हाल मे है । रानी इसी ताल के पास सती हुई थी ।
राजा वेणु का किला – पूरनपुर मे शाहगढ़ स्टेशन से लगभग 1 किमी दूर एक टीला है । जहाँ कभी राजा वेणु का महल था । राजा वेणु से लक्ष्मी के रूठने, खूंटी द्वारा हार निगल जाने तथा सात कन्याओ के इधर उधर हो जाने की कहानियाँ जन मानस मे प्रचलित है । शाहगढ़ टीला सात देवियो की जन्म भूमि के रूप मे प्रासिद्ध है ।
इलाबॉस – पीलीभीत की बीसलपुर तहसील मे इलाबॉस गाँव मे देवी जी का प्राचीन मंदिर है । यह मंदिर 12वी शताब्दी का निर्मित है ।
मोरध्वज का किला – पीलीभीत जनपद की बीसलपुर तहसील स्थित बिलसण्डा करवा के निकट मरौरी ग्राम के पुराने महल भग्नाविशेष है । जन श्रुति के अनुसार यहाँ राजा मोरध्वज का किला बताया जाता है । इस तिले के पास अष्टकोण का तालाब भी है ।
बाबा दुर्गानाथ का मन्दिर – माधोटांडा के पास बाबा दुर्गानाथ की समाधि पर स्थित मन्दिर दुर्गानाथ का मन्दिर कहलाता है । यहाँ एक सिद्ध योगी दुर्गानाथ रहते थे । उनको गंगा म्य्या द्वारा प्रतिदिन गंगा स्नान करने का वरदान प्राप्त था । उसके बाद उनकी कुटिया के निकट गंगा की प्रवाह मान धारा प्रकट हुई । जिससे वह प्रतिदिन स्नान करने लगे । आज यह स्थल गोमती उद्गम स्थल माना जाता है ।
शाही जामा मस्जिद – पीलीभीत मे दिल्ली की शाही जामा मस्जिद की तर्ज पर रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने इस मस्जिद का निर्माण सन् 1766-67 मे करवाया था । इसका निर्माण कच्ची ईट तथा सुर्खी व चुना मसाले से हुआ । इसकी नीव स्वयं रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने रखी थी सबसे पहले इमाम हाफ़िज़ नुरूद्दीन गजनवी थे ।
दरगाह हजरत शाहजी मियां – कुतबे पीलीभीत हजरत हाजी शाहजी मोहम्मद शेर मियां रहमतुल्ला अलैह की दरगाह नगर के उत्तर दिशा मे स्थित है । यहाँ मजार पर चादर चढ़ाने से दिल से मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है ।
गौरी शंकर मन्दिर - गौरी शंकर मन्दिर लगभग 250 साल पुराना यह मन्दिर पीलीभीत मे स्थित है । पूरब व दक्षिण मे दो दरवाजे है । जिसका निर्माण रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने कराया था । यह मुख्य मन्दिर गौरी शंकर का है । इस मन्दिर का शिवलिंग पुरातत्व विभाग द्वारा 2000 वर्ष पुराना माना गया है । इस शिवलिंग का रंग लाल है । शिवलिंग पर पार्वती तथा शिव जी के आधे- आधे रूप बने हुए है । एक विशाल अद् भुत द्वार है । जिसे रुहेला सरदार हाफ़िज़ रहमत खाँ ने 1770 मे बनवाया था ।
जयसंतरी देवी का मन्दिर – इसका इतिहास 300 वर्ष पुराना है । किवदंती के अनुसार यहां पहले नकटा नाम का दानव रहता था । जो इस रास्ते से गुजरता था तो दानव उसे खा जाता था । उसी रास्ते से एक बार जयसंतरी देवी गुजरी । जिससे देवी ने उस दानव का वध कर दिया । उस राक्षस को खोजा गया तो वह मन्दिर से कुछ दूरी पर पाया गया उसकी नाक कटी हुई थी । उस स्थान को नकटा दाना चौराहा कहा जाता है ।
दूधिया मन्दिर – मन्दिर काफी पुराना है । इस मन्दिर मे दूध के समान श्वेत शिवलिंग बना हुआ है। सावन के महीने मे इस मंदिर पर मेला लगता है ।
गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा छेबी पातशाही – प्राचीन समय मे यह गुरुद्वारा एक धर्मशाला के रूप मे था । श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ नियमित रूप से होता था । श्री हर गोविंद साहिब जी पंजाब से नानकमत्ता साहिब की यात्रा के दौरान इस धर्मशाला मे रुके थे ।
मथोडिस्ट चर्च – नगर के मोहल्ला खाकरा मे 100 बर्ष से अधिक पुराना मथोडिस्ट चर्च इसथित है । यहाँ प्रति बर्ष क्रिसमस डे व अन्य ईसाई पर्व पर बड़े इस्तर पर प्रार्थना सभा का आयोजन होता है ।
पौराणिक ताल लिलहर – बिल्सण्डा वामरौली मार्ग के निकट प्राचीन गाँव लिलहर है । चैत्र की अमावस्या को यहाँ मेला लगता है । राजा मोरधव्ज के एक भाई नीलध्वज को कोड रोग से पीड़ित था । एक बार वह अपने काफिले से इसी स्थान पर आए यहाँ एक पोखर था । पोखर के पानी से हाथ का कोड ठीक हो गया ।
कमल कुमार राठौर
पीलीभीत
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