महात्मा गाँधी का कहना था-शांति- शांति-शांति
जबकि वीर सावरकर का नारा था -क्रांति-करांति-क्रांति|
लेकिन अफ़सोस आज हम उस मुकाम पर खड़े है जहाँ से इतिहास हमें चुनोती दे रहा
है| आज कि पीढी वीर सावरकर के बारे मैं कुछ ज्यादा नहीं जानती है क्योंकि
धर्मनिरपेक्षता का रोना रोने वालो ने देश मैं क्रांति का उदघोष करने वालो
से अन्याय किया, उनका पूरा इतिहास सामने ही नहीं आने दिया| लाल रंग मैं
रंगे बिके हुए इतिहासकारों ने क्रांतिकारिओं के इतिहास को विकृत किया |
पाठ्य पुस्तकों से उनके जीवन सम्बन्धी लेख हटाये गए|
वीर सावरकर एक
महान राष्ट्रवादी थे| भारतीय स्वंत्रता संग्राम मैं उनकी भूमिका अतुलनीय
है| वीर सावरकर भारत के पहले क्रन्तिकारी थे जिन्होंने विदेशी धरती से भारत
कि स्वाधीनता के लिए शंखनाद किया| वो पहले स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने
भारत कि पूर्ण स्वतंत्रता कि मांग की| वो पहले भारतीय थे जिनकी पुस्तके
प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गई और वो पहले छात्र थे जिनकी डिग्री
ब्रिटिश सरकार ने वापिस ले ली थी| वस्तुत: वह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के
अमर सेनानी, क्रांतिकारिओं के प्रेरणास्त्रोत, अद्वितीय लेखक, राष्ट्रवाद
के प्रवर्तक थे, जिन्होंने अखंड हिंदुस्तान के निर्माण का संकल्प लिया|
उनका सारा जीवन हिंदुत्व को समर्पित था| उन्होंने अपनी पुस्तक 'हिंदुत्व' मैं हिन्दू कोण है की परिभाषा मैं यह श्लोक लिखा--
"आसिंधू सिन्धुपर्यन्तास्य भारतभूमिका |
पितृभू: पुन्याभूश्चैवा स वै हिन्दूरीति स्मृत:|| "
जिसका अर्थ है कि भारत भूमि के तीनो ओर के सिन्धुओं से लेकर हिमालय के
शिखर से जहाँ से सिन्धु नदी निकलती है, वहां तक कि भूमि हिंदुस्तान है एवं
जिनके पूर्वज इसी भूमि पर पैदा हुए है ओर जिनकी पुण्य भूमि यही है वोही
हिन्दू है| " सावरकर का हिन्दू धर्मं से नहीं एक व्यवस्था, आस्था, निष्ठा,
त्याग का परिचायक है, जो सामाजिक समरसता को बढ़ने मैं अग्रसर हो|
वह तो
फिरंगियों की चल से उद्वेलित थे जो जो की हिंदुस्तान मैं अपनी सत्ता को
कायम रखने की लिए साम्प्रदायिकता को बढावा दे रहे थे|अंग्रेजो द्वारा देश
के किसानों मजदूरों पर जुल्म ढहाने वाले उनके कतई बर्दाश्त नहीं थे|
उन्होंने हिंदुत्व के नाम पर देश को संगठित करने का प्रयत्न किया| वीर
सावरकर के क्रन्तिकारी विचारो और राष्ट्रवादी चिंतन से अंग्रेजो की नींद
हरम हो गई थी और भयभीत अंग्रेजी सत्ता ने उन्हें कालापानी की सजा दी ताकि
भारतीय जनता इनसे प्रभावित होकर अंग्रेजी सत्ता को न उखाड़ फैंके| वीर
सावरकर ने अपनी निष्ठां और आत्मसम्मान पर कभी भी आंच नहीं आने दी| मदन लाल
ढींगरा ने १ जुलाई ,१९०९ को कर्जन वायले की हत्या कर दी तब इंडिया हॉउस मैं
इस हत्या की निंदा करने के लिए एक सभा हुई जिसमें सर आगा खान ने कहा की यह
सभा सर्वसम्मति से इस हत्या की निंदा करती है| इतने मैं वीर सावरकर ने
निर्भय होकर कहा "केवल मुझे छोड़कर"|
वीर सावरकर पर यह भी आरोप भी
लगाया गया की उन्होंने मदन लाल ढींगरा को उकसाकर कर्जन वायले की हत्या
करवाई है| १३ मार्च १९१० को उन्हें लन्दन के विक्टोरिया स्टेशन पर गिरफ्तार
कर लिया गया| उससे पूर्व उनके दोनों भाइयों को भी क्रन्तिकारी गतिविधियों
के लिए जेल मैं बंद कर दिया गया था| वीर सावरकर को जब इस बात का पता चला तो
वे गर्व के साथ बोले "इससे बड़ी और क्या बात होगी की हम तीनो भाई ही भारत
माता की आजादी के लिए तत्पर है|" इतिहास साक्षी है की १ जुलाई १९१० के
ब्रिटेन से भारत ले जाने वाले समुद्री जहाज मैं सावरकर को बैठाया गया और वो
८ जुलाई १९१० को "स्वतंत्र भारत की जय" बोल कर समुद्र मैं कूद पड़े|
अंग्रेजो ने खूब गोलियां चलाई पर निर्भय सावरकर लगातार कई घंटे तैरकर
फ्रांस की सीमा मैं पहुँच गए जहाँ उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया| उन
पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग मैं मुकदमा चलाया गया और उन्हें दो आजीवन
कारावास की सजा सुनाई गई| जज ने जब उनसे कहा की अंग्रेज सरकार आपको ५० साल
बाद रिहा कर देगी तो उन्होंने मजाक उड़ते हुए कहा की क्या अंग्रेज ५० वर्षो
तक भारत मैं टिके रहेंगे| सजा सुनते ही उन्होंने व्यंग्य किया- चलो इसाई
सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म के सिधांत को मन लिया है|
वीर
सावरकर को कला पानी की सजा के दोरान भयानक सैल्यूलर जेल मैं रखा गया|
उन्हें दूसरी मंजिल की कोठी नंबर २३४ मैं रखा गया और उनके कपड़ो पर भयानक
कैदी लिखा गया| कोठरी मैं सोने और खड़े होने पर दीवार छू जाती थी| उन्हें
नारियल की रस्सी बनाने और ३० पोंड तेल प्रतिदिन निकलने के लिए बैल की तरह
कोल्हू मैं जोता जाता था| इतना कष्ट सहने के बावजूद भी वह रत को दिवार पर
कविता लिखते, उसे याद करते और मिटा देते| १३ मार्च १९१० से लेकर १० मई १९३७
तक २७ वर्षो की अमानवीय पीडा भोग कर उच्च मनोबल, ज्ञान और शक्ति साथ वह
जेल से बाहर निकले जैसे अँधेरा चीर कर सूर्य निकलता है|
आजादी के बाद
भी पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस ने उनसे न्याय नहीं किया| देश का
हिन्दू कहीं उन्हें न अपना नेता मन बैठे इसलिए उन पर महात्मा गाँधी की
हत्या का आरोप लगा कर लाल किले मैं बंद कर दिया गया| बाद मैं न्यायालय ने
उन्हें ससम्मान रिहा कर दिया| पूर्वाग्रह से ग्रसित कांग्रेसी नेताओं ने
उन्हें इतिहास मैं यथोचित स्थान नहीं दिया| स्वाधीनता संग्राम मैं केवल
गाँधी और गांधीवादी नेताओं की भूमिका का बढा-चढ़ाकर उल्लेख किया गया|
वीर सावरकर की मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें नहीं छोडा| सन २००३
मैं वीर सावरकर का चित्र संसद के केंद्रीय कक्ष मैं लगाने पर कांग्रेस ने
विवाद खडा कर दिया था| २००७ मैं कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर ने अंडमान
के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर के नाम का शिलालेख हटाकर महात्मा गाँधी के
नाम का पत्थर लगा दिया| जिन कांग्रेसी नेताओ ने राष्ट्र को झूठे आश्वासन
दिए, देश का विभाजन स्वीकार किया, जिन्होंने शेख से मिलकर कश्मीर का सोदा
किया, वो भले ही आज पूजे जाये पर क्या वीर सावरकर को याद रखना इस राष्ट्र
का कर्तव्य नहीं है???आजादी केवल गांधीवादियों की देन नहीं है बल्कि भगत
सिंह, चन्द्र शेखर आजाद,राजगुरु,सुखदेव,नेताजी
( वीर सावरकर जी के जन्म दिवस पर विशेष)
स्वातन्त्र्यवीर सावरकर कौन थे ?
१. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्वतन्त्रता के लिए क्रान्तिकारी अभियान चलाने वाले पहले भारतीय थे वीर-विनायक दामोदर सावरकर|
२. मुद्रित और प्रकाशित होने के पूर्व ही दो शासनों ने जिनकी पुस्तकें ज़ब्त घोषित कर दीं, ऐसे पहले लेखक थे स्वातन्त्र्यवीर सावरकर|
३. भारत की स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत रहने के कारण जिन्हें एक
भारतीय विश्व-विद्यालय की अपनी उपाधि से वंचित होना पडे़, ऐसे पहले स्नातक थे वीर विनायक सावरकर|
४. दो जन्मों का आजीवन कारा-दंड मिलने पर भी उससे बचने के बाद भी क्रियाशील रहे, विश्व के ऐसे पहले राजवंशी थे तात्या सावरकर|
५. ब्रिटिश न्यायालय के अधिकार को अमान्य करने वाले भारत के पहले विद्रोही नेता थे स्वातन्त्र्य वीर सावरकर|
६. राजनिष्ठा की शपथ लेने से इंकार कर देने के कारण जिन्हें बैरिस्टर की उपाधि प्रदान नहीं की गयी, ऐसे पहले भारतीय छात्र थे वीर सावरकर|
७. भारतीय राष्ट्र जीवन को सभी स्तरों पर पुनर्गठित करने पर जिन्होनें गंभीरता से विचार किया और अपनी रत्नागिरी की स्थानबद्धता के काल-खंड में जिन्होने अस्पृश्यता को मिटाने और जातिमुक्त समाज निर्माण के लिए तीव्र अभियान आरंभ किया, ऐसे पहले क्रान्तिकारी नेता थे स्वातन्त्र्यवीर सावरकर|
८. सार्वजनिक सभा में विदेशी कपडो की होली जलाने का साहस दिखाने वाले पहले राजनीतिक नेता थे राष्ट्र-व्रती सावरकर|
९. "संपूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता" ही भारत का ध्येय है, ऐसी साहस-पूर्ण घोषणा करने वाले पहले युग नायक थे सावरकर|
१०. लेखनी और कागज से वंचित होकर भी जिन्होंने काव्य सृजन किया, कविताओं को अंडमान की कालकोठरी की दीवारों पर कांटों से अंकित किया| उनकी यह सहस्र पंक्तियां वर्षों तक स्मरण रखकर बाद में उन्हें अपने सहबंदियों द्वारा स्वदेश पहुंचाने वाले विश्व के पहले कवि थे विनायक दामोदर|
११. विदेशी भूमि पर जिनका बंदी बनाया जाना देश के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में प्रतिष्ठा का विशय बनकर उभरा, ऐसे पहले राजबंदी थे सावरकर|
१२. योग की सर्वोच्च परंपरा के अनुसार जिन्होंने "आत्मार्पण" द्वारा मृत्यु का स्वेच्छा से आलिंगन किया ऐसे प्रथम और एकमेव क्रान्तिकारी थे संगठक सावरकर|
प्रस्तुति: सावरकर सेना
साभार : शोध-वाहिनी, राष्ट्र-योग शोध मंत्रालय, संक्रान्ति