अभी
कुछ समय पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही
और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है । ये Commonwealth का मतलब होता है
समान सम्पति ।
किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति ।
आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी
भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो । Commonwealth
में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को
वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन
भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की
जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं
मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है
या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को
पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त
1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | और Commonwealth
Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि
Independent Nation के रूप में| इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए
राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी
नहीं | लेकिन
ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती
है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक
निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की
महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश
का राष्ट्रपति देश का प्रथम
नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र
देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों
का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश
के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का
उदहारण
भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे
शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ,
(ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स ,
(ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक
और प्रिन्स
विलियम भी आ गए है | भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का
नाम
इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के
ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन
दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है
"India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India "
लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी
संधि के शर्तों में से एक है | अब
हमारा देश भारत है इंडिया नहीं
हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं
से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद
नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने
बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में
आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स
के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब
तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे
और पीछे ही होता जा रहा है | भारत के संसद में वन्दे मातरम
नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व
प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार
इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं
गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम
को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर
ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल
को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है (
यहाँ देखें)
जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर
व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर | इस संधि की
शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले
करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष
चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को
मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता
नहीं लगा और न
ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता
सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद
फौज बनाई थी ये तो आप सब
लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया
गया था और
उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में
जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस
आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को
सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली
और
चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और
दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष
चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने
चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें
भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा
था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे | इस संधि की शर्तों के
अनुसार भगत सिंह,
चंद्रशेखर आजाद,
अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे
syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक
ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने
अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने
का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा
था) | आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर क किताब की दुकान देखते होंगे
"व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था
? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और
बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां
चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और
नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था
चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा इस
व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ
गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी
बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है | इस संधि की
शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले येगे लेकिन इस देश में कोई भी
कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश
में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था |
Indian Police Act,
Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative
Act),
Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का
मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब
कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल
स्टॉप का भी अंतर नहीं है)
- Indian Citizenship Act,
- Indian Advocates Act, Indian ,
- Education Act, Land,
- Acquisition Act, Criminal,
- Procedure Act, Indian,
- Evidence Act, Indian,
- Income Tax Act,
- Indian Forest Act,
- Indian Agricultural Price Commission Act
सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल
स्टॉप और कौमा बदले हुए | इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन
जैसे के तैसे
रखे जायेंगे | शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज
देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम
गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड
डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है
(हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन
रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों
भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में
देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे
गुजरात में
एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला |
अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो
सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये
गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत
शहर में खड़ा है | हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये
इस संधि में लिखा है और मजे
क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने
यहाँ अलग किस्म
क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और
उनके यहाँ ठीक
उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में
पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे
अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब
नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं
और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको
प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की
जरूरत नहीं होती है | हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में
बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास
मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि
आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा
शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज
चाहते थे | आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है
Anthropology | जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों
क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है | और ये अंग्रेजों ने ही इस
देश में शुरू किया था और आज आज़ादी के 64 साल बाद भी ये इस देश के
विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस
की परीक्षा में भी ये चलता है | इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश
में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या
हमारे ही देश में ख़त्म
हो जाये ये साजिस की गयी | आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक
प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए | दुनिया में जितने भी पैथी हैं
उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद
एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत
पड़िए |
आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला
राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं
हो रहा था तो उसके
डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा
हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों
क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन
मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और
यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है क़ि हमारे
देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब आयुर्वेद की
वजह से था और
उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है | इस संधि के
हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया
जायेगा | हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल
ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल
परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना
चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था,
इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के
(भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए
कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई
जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का
फैसला अंग्रेजों के न्याय
पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे
लागू
नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही
अनुसरण
करना होगा | भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के
खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था
और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो
जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत
सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड,
लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126
कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो
सिलसिला जारी है |
अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा
क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप देखिये क़ि
हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं
अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को
अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम
ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और विदेश मंत्री जैसे पद पर बैठे
गधे UNO में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद
तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है
क्यों ?
क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते
हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30
बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर
सके | इतनी गुलामी में रहा है ये देश | ये भी इसी संधि का हिस्सा है | 1939
में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड
का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि
जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए
उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली
आज भी
लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है | और इस राशन कार्ड को पहचान
पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है |
जिनके पास राशन कार्ड होता था
उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था | आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य
पहचान पत्र है इस देश में | अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार
कलकत्ता में बड़ा कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला
वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती
थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय
के काटने के लिए विशाल कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी
उन अंग्रेजों के | अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब
आसानी से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना
चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है | हमारे देश में
जो संसदीय लोकतंत्र है
वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड
क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक
है| लेकिन इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में
कहा गया है | और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को महात्मा गाँधी बाँझ और
वेश्या कहते थे
(मतलब आप समझ गए होंगे) | ऐसी हजारों शर्तें हैं | मैंने अभी जितना जरूरी
समझा उतना लिखा है
| मतलब यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का
है हमारा कुछ नहीं है | अब आप के मन में ये सवाल हो रहा होगा क़ि पहले के
राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो
खतरनाक संधियों (साजिस) के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन
आज़ादी के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन
संधियों के जाल में फँस गए | इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि आज़ादी के
समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबूझ कर
ये संधि क़ि थी | वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढियां कोई नहीं है इस
दुनिया में |
भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो
केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे | वे
कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में,
आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो
अंग्रेजों की, आदर्श
चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो
अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है
तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो
अंग्रेजों की | हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श
कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत
अंग्रेजों जैसा बनाना है | अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते
पर हम चलेंगे | इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण संधियों में फंसे | अगर आप अभी
तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल दीजिये | और आप अगर
समझ रहे हैं क़ि वो ABC पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो XYZ पार्टी के
नेता भी दूध के धुले नहीं हैं | आप किसी को भी अच्छा मत समझिएगा क्योंक़ि
आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या
प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का
स्वाद तो सबो ने चखा ही है | खैर ............... तो भारत क़ि गुलामी जो
अंग्रेजों के ज़माने में थी, अंग्रेजों के जाने के 64 साल बाद आज 2011 में
जस क़ि तस है क्योंकि हमने संधि कर रखी है और देश को इन खतरनाक संधियों के
मकडजाल में फंसा रखा है | बहुत दुःख होता है अपने देश के बारे जानकार और
सोच कर | मैं ये सब कोई ख़ुशी से नहीं लिखता हूँ ये मेरे दिल का दर्द
होता है जो मैं आप लोगों से शेयर करता हूँ | ये सब बदलना जरूरी है लेकिन
हमें सरकार नहीं व्यवस्था बदलनी होगी और आप अगर सोच रहे हैं क़ि कोई मसीहा
आएगा और सब बदल देगा तो आप ग़लतफ़हमी में जी रहे हैं | कोई हनुमान जी, कोई
राम जी, या कोई कृष्ण जी नहीं आने वाले | आपको और हमको ही ये सारे
अवतार में आना होगा, हमें ही सड़कों पर उतरना होगा और और इस व्यवस्था को जड
मूल से समाप्त करना होगा | भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद
स्वयं करता है | इतने लम्बे पत्रलेख को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए
आपका धन्यवाद् | और अच्छा लगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, और ज्ञान का
प्रवाह होते रहने दीजिये |