Friday, December 16, 2011

अपराजेय अयोध्या : अयोध्या एक यात्रा (भाग - 1)




Source: IBTL

इस श्रृंखला के लेख IBTL से लिए गए है ! इनका श्रेय IBTL को ही दिया जाये !

अयोध्या अपने शाब्दिक अर्थ के अनुसार यह अपराजित है.. यह नगर अपने २२०० वर्षों के इतिहास मे अनेकों युद्धों व संघर्षो का प्रत्यक्ष दर्शी रहा है, अयोध्या को राजा मनु द्वारा निर्मित किया गया और यह श्री राम जी का जन्मस्थल है। इसका उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रंथों जिसमे रामायण व महाभारत सम्मिलित हैं, में आता है। वाल्मिकि रामायण के एक श्लोक मे इसका वर्णन निम्न प्रकार है।

कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान्। निविष्ट सरयूतीरे प्रभूत-धन-धान्यवान् ॥१-५-५॥
अयोध्या नाम नगरी तत्रऽऽसीत् लोकविश्रुता। मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ॥१-५-६॥
— श्रीमद्वाल्मीकीरामायणे बालकाण्डे पञ्चमोऽध्यायः

श्री ग्रिफैत्स जो 19 शताब्दी के आख़िर मे बनारस कॉलेज के मुख्य अध्यापक रहे... उन्होने रामायण मे अयोध्या के वर्णन को बड़ी सुंदरता से इस प्रकार अनुवादित किया, उनके शब्दों के अनुसार - " उस नगरी के विशाल एवं सुनियोजित रास्ते और उसके दोनो ओर से निकली पानी की नहरें जिस से राजपथ पर लगे पेड़ तरो ताज़ा रहें और अपने फूलो की महक को फैलाते रहें। एक कतार से लगे हुए और सतल भूमि पर बने बड़े बड़े राजमहल हैं, अनेक मंदिर एवं बड़ी बड़ी कमानें, हवा मे लहराता विशाल राज ध्वज, लहलहाते आम के बगीचे, फलों और फूलों से लदे पेड़, मुंडेर पर कतार से लगे फहराते ध्वजों के इर्द गिर्द और हर द्वार पर धनुष लिए तैनात रक्षक हैं। "
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कौशल राज्य के नरेश राजा दशरथ राजा मनु के ५६ वंशज माने जाते हैं, उनकी ३ पत्नियां थी, कौशल्या, सुमीत्रा व कैकेयी, ऐसा माना जाता है श्री राम का जन्म कौशल्या मंदिर मे हुआ था, अतः उसे ही राम जन्म स्थल कहा जाता है. ब्रह्मांड पुराण में अयोध्या को हिंदुओं ६ पवित्र नगरियों से भी अधिक पवित्र माना गया है। जिसका उल्लेख इस पुराण मे इस प्रकार किया गया है -

अयोध्य मथुरा माया, काशी कांचि अवंतिका, एताः पुण्यतमाः प्रोक्ताः पुरीणाम उत्तमोत्तमाः

महर्षि व्यास ने श्री राम कथा का वर्णन उनके द्वारा रचित महाभारत के वनोपाख्यान खंड मे किया है, अयोध्या सदियों से अयोध्या वासियों द्वारा बारंबार निर्मित की गयी है, यह अयोध्या वासियोम की जिजीविषा ही है कि वह इस नगर को अनेकानेक बार पुनर्रचित कर चुके हैं। अलक्षेंद्र (सिकंदर) के लगभग २०० वर्ष बाद, मौर्य शासन काल के दौरान जब बौद्ध धर्म अपनी चरम सीमा पर था, एक ग्रीक राजा मेनंदार अयोध्या पर आक्रमण करनी की नीयत से आया, उसने बुद्ध धर्म द्वारा प्रभावित होने का ढोंग कर बौद्ध भिक्षु होने का कपट किया और अयोध्या पर धोखे से आक्रमण किया एवं इस आक्रमण मे जन्मस्थल मंदिर ध्वस्त हुआ, किंतु सिर्फ़ 3 महीने मे शुंग वंशिय राजा द्युमतमतसेन द्वारा मेनंदार पराजित किया गया और अयोध्या को स्वतंत्र कराया गया।

जन्म स्थान मंदिर की पुनर्रचना राजा विक्रमादित्य ने की, इतिहास मे 6 विक्रमादित्यो का उल्लेख आता है, इस बात पर इतिहासविद एक मत नही है कि किस विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण किया। कुछ के अनुसार वो विक्रमादित्य जिसने शको को सन ५६ ई.पू. मे पराजित किया और जिसके नाम से शक संवत चलता है, तो कुछ कहते हैं स्कंदगुप्त जो स्वयं को विक्रमादित्य कहलाता था, उसने 5 वी शताब्दी के अंत मे मंदिर निर्माण किया। पी. करनेगी की किताब " ए हिस्टॉरिकल स्कैच ऑफ फ़ैज़ाबाद " मे कही बात साधारणतया सर्वमान्य है। उसमे वो कहते हैं, विक्रमादित्य के पुरातन शहर ढूँढने का मुख्य सूत्र यह है कि जहाँ सरयू बहती है और भगवान शंकर का रूप नागेश्वर नाथ मंदिर जहाँ है। ये भी माना जाता है की विक्रमादित्या ने करीब ३६० मंदिर अयोध्या मे बनवाए और इसके बाद हिंदुओं द्वारा श्री राम की पूजा निरंतर चलती रही.. इसकी पुष्टि नासिक स्थित सातवाहन राजा द्वारा बनाई पुरातन गुफा के शिला लेख मे मिलती है, बहुचर्चित संस्कृत नाटककार भास ने भगवान राम को अर्चना अवतार मे जोड़ा है।

नमो भगवते त्रैलोक्यकारणाय नारायणाय
ब्रह्मा ते ह्रदयं जगतत्र्यपते रुद्रश्च कोपस्तव
नेत्र चंद्रविकाकरौ सुरपते जिव्हा च ते भारती
सब्रह्मेन्द्रमरुद्रणं त्रिभुवनं सृष्टं त्वयैव प्रभो
सीतेयं जलसम्भवालयरता विश्णुर्भवान ग्रह्यताम

श्री राम को विष्णु अवतार मे पूजा जाने की परंपरा है, जिसका प्रमाण पुरानी दस्तकारी एवं शिला लेखों मे मिलते हैं। चौथी शताब्दी के रामटेक मंदिर की दस्तकारी, सन ४२३ ए.डी. का कंधार का शिलालेख, सन ५३३ ए.डी. का बादामी का चालुक्य शिलालेख, आठवीं शताब्दी (ए.डी) का मामल्लापुरम का शिलालेख, ११वीं शताब्दी में जोधपुर के नज़दीक बना अंबा माता मंदिर, ११४५ ए.डी. का रेवा जिले के मुकुंदपुर में बना राम मंदिर, ११६८ ए.डी. का हँसी शिलालेख, रायपुर जिले के राजीम मे बना राजीव लोचन मंदिर इनमे से कुछ हैं।

१२ शताब्दी में अयोध्या मे पांच मंदिर थे, गौप्रहार घाट का गुप्तारी, स्वर्गद्वार घाट का चंद्राहरी, चक्रतीर्थ घाट का विष्णुहरी, स्वर्गद्वार घाट का धर्महरी, और जन्मभूमि स्थान पर विष्णु मंदिर, इसके बाद जब महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर आक्रमण किया तो उसने सोमनाथ को लूटा और वापस चला गया. किंतु उसका भतीजा सालार मसूद अयोध्या की ओर बढ़ा, १४ जून १०३३ को मसूद अयोध्या से ४० किलोमीटर दूर बहराइच पहुँचा, यहाँ सुहैल देव के नेतृत्व मे सेना एकत्र हुई और मसूद पर आक्रमण किया दिया, जिसमे मसूद की सेना परास्त हुई, और मसूद मारा गया. मसूद के चरित्रकार अब्दुल रहमान चिश्ती मिरात ए मसूदी मे कहते हैं,

" मौत का सामना है, फिराक़ सूरी नज़दीक है, हिंदुओं ने जमाव किया है, इनका लश्कर बे-इंतेहाँ है. नेपाल से पहाड़ों के नीचे घाघरा तक फौज मुखालिफ़ का पड़ाव है। मसूद की मौत के बाद अजमेर से मुज़फ्फर ख़ान तुरंत आया, पर वो भी मारा गया... अरब ईरान के हर घर का चिराग बुझा है। "

अपराजेय अयोध्या : अयोध्या एक यात्रा (भाग - 2)


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अपराजेय अयोध्या : अयोध्या एक यात्रा से आगे पढ़ें : इसके पश्चात फिर से राम भक्ति की परंपरा चलती रही, कई साहित्यिक एवं धार्मिक श्रोत अयोध्या महात्म्य में नज़र आते हैं जो १२ या १३ शताब्दी मे लिखा गया। अयोध्या महात्म्य में अनेकों जगह ऐसी कई बातें हैं, जो अयोध्या को महानतम मोक्ष मुक्तिदायक बनाते हैं।

तस्मात स्थानवं एशाने रामजन्म प्रवर्तते, जन्मस्थातं इदं प्रोक्त मोक्षादिफलसाधनं
विघ्नेश्वरात्पूर्वमागे वसिष्ठात उत्तरेतथा लौमशात पश्च्मे भागे जन्मस्थानं तत

अयोध्या मयात्म्य मे जन्मस्थान का विवरण और उसके निश्चित जगह का ब्यौरा है, और इसके साथ ही यह भी लिखा है कि रामनवमी के दिन जन्मस्थान के दर्शन से पुनर्जन्म टलता है। मोक्ष मिलता है, लाखों हिंदु अयोध्या महात्म्य मे लिखी बातों का विश्वास कर अयोध्या जाते रहे।

१५२६ मे मध्य एशिया के फरगाना प्रांत से बाबर का प्रवेश हुआ, १६ मार्च १५२७ को बाबर ने राणा सांगा को हरा कर दिल्ली पर कब्जा किया, यह मुगल साम्राज्य की शुरुआत थी, कुछ समय बाद बाबर ने अपने  सिपहसालार मीर बाकी को अयोध्या पर आक्रमण करने का आदेश दिया। " शहंशाह हिंद बादशाह बाबर के हुक्म व हजरत जलालशाह के हुक्म के बामुजिन अयोध्या मे रामजन्मभूमि को मिस्मार कर के उसकी जगह पर उसी के मलबे और मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गई है, बाजरिये इस हुक्म नामे के तुमको बतौर इत्तिला से आगाह किया जाता है कि हिंदुस्तान के किसी सूबे से कोई भी हिंदू अयोध्या ना जाने पावे, जिस शख्स पर ये शुबहा हो कि वो वहॉ जाना चाहता है, उसे फौरन गिरफ्तार कर के दाखिल ए जिंदा कर दिया जावे, हुक्म का सख्ती से तामील हो, फर्ज समझ कर। "
(यह आदेश पत्र ६ जुलाई १९२४ के मॉडर्न रिव्यू के दिल्ली से प्रकाशित अंक मे प्रकाशित हुआ है.)

२३ मार्च १५२८ तक एक लाख सत्तर हजार से अधिक लोग जन्म भूमि स्थान पर लडते लडते मारे गये और अंत मे हार गये। मीर बाकी ने बाबर के आदेशों का पालन करते हुए जन्मस्थल मंदिर को ध्वस्त किया और उसी स्थान पर मस्जिद बनाई। कहा जाता है जब मीर बाकी के लोग मस्जिद बना रहे थे, तो प्रत्येक दिन को होने वाला काम रात को ढह जाता था. बाबर ने अपने आत्म चरित्र ताजुक ए बाबरी मे लिखा है।

" अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर को मिस्मार करके जो मस्जिद तामीर की जा रही है उसकी दीवारें शाम को आप से आप गिर जाती हैं। इस पर मैने खुद जा के सारी बातें अपनी ऑखो से देख कर चंद हिंदू ओलियाओं कीरों को बुला कर ये मसला उन के सामने रखा। इस पर उन लोगों ने कई दिनों तक गौर करने के बाद मस्जिद में चंद तरमीमें करने की राय दी। जिनमें पाँच ख़ास बातें थी... यानी मस्जिद का नाम सीता पाक या रसोई रखा जाए, परिक्रमा रहने दी जाए, सदर गुंबद के दरवाजे में लकड़ी लगा दी जाए, मीनारें गिना दी जाए, और हिंदुओं को भजन पाठ करने दिया जावे। उनकी राय मैने मान ली, तब मस्जिद तैयार हो सकी। "

यहां एक विचार बहुत आश्चर्यजनक है, मीनारें किसी भी मस्जिद का एक प्रमुख हिस्सा होती है, जबकि परिक्रमा हिंदू मंदिरों का, बनाई गई मस्जिद में ये दो अपवाद हिंदुओं के मंदिर को बिना मूर्ति के मंदिर मे परिवर्तित करने जैसा ही है। इस ढांचे का नाम सीता पाक रखा गया जो बाद मे बाबरी मस्जिद नाम से प्रचारित किया गया।

१२ अप्रैल १५२८ से १८ सितंबर १५२८ तक के बाबर की दिनचर्या के विवरण उपलब्ध नही हैं, शायद दिनचर्या के ये पन्ने १७ मई १५२९ के तूफान मे या १५४० के हुमांयु के रेगिस्तान में निवास के कारण नष्ट हुए हों। ३ जून १५२८ को सनेथु के देवीदीन पांडे और महावत सिंह ने मीरबाकी पर हमला किया, स्वयं देवीदीन पांडे ने ५ दिन मे ६०० सैनिको को मार गिराया। किंतु बाद मे देवीदीन को मीरबाकी ने मार गिराया। १५२९ को ईद के दिन राणा रण विजय ने जन्मस्थल की मुक्ति के लिये फिर प्रयास किया, किंतु कुछ ना हो सका। १५३० मे बाबर की मृत्यु हुई, उसके पश्चात उसके पुत्र हुमायू ने गद्दी संभाली, उसके शासन काल मे १५३० से १५५६ तक रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरा नंद ने जन्मस्थान की मुक्ति हेतु १० बार प्रयास किया। जन्मभूमि का नियंत्रण बार बार एक पक्ष से दूसरे पक्ष की ओर जाता रहा।

राम से बाबर तक : अयोध्या एक यात्रा (भाग - 3)



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राम से बाबर तक : अयोध्या एक यात्रा से आगे पढ़ें ... हुमायूँ के बाद अकबर का शासन काल आया, उसने अपने राज्य को १२ भागो मे विभक्त किया, अनुमानित है कि अकबर के शासन काल मे हिंदुओं ने लगभग २० बार जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने की लडाईयां लडी, अकबर ने हिंदुओं के अधिकार को मान्यता देते हुए मस्जिद के बिल्कुल आगे एक चबूतरा बनाने और पूजा करने का अधिकार दिया, यही चबूतरा आज राम चबूतरा के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही अकबर ने राम और सीता मुद्रित चांदी के सिक्के (रामटका) भी बनवाये. और रामायण की सचित्र किताबे भी बनवाई. अकबरनामा व आइना ए अकबरी के लेखक अबुल फजल अयोध्या को राम का निवास व हिंदुओ की पुण्यभूमि मानते हैं।

जहांगीर के शासन काल मे १६०८ व १६११ के बीच विलियम फिंच ने अयोध्या की यात्रा की, उन्होंने भी अयोध्या में राम के होने की पुष्टि अपने लेख में की जिसे विलियम फोस्टर ने अपनी पुस्तक " अर्ली  ट्रेवल्स इन इंडिया " मे शामिल किया। १८५८ के बाद औरंगजेब के सरदार जांबाज खान ने अयोध्या पर हमला किया किंतु परास्त हुआ, गुरु गोविंद सिंह जी के अकालियों ने उसे रुदाली और सादातगंज मे हराया। १६६४ मे औरंगजेब स्वयं अयोध्या पहुंचा और राम चबूतरा तोडने के साथ साथ १०००० हिंदुओ को भी मार डाला.  लेकिन उसके बाद भी रामनवमी का पर्व अयोध्या मे मनाया जाता रहा. नवाब सलामत खान ने भी अमेठी के राजा गुरदत्त सिंह और पिंपरा के राजकुमार सिंह के साथ लडाई की। सादिक अली ने भी जन्मस्थान पर कब्जा करने की ५ लडाईयां छेडी।
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Eng : From Akbar to Indian Independence : Ayodhya - a journey through time
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१७५१ मे अवध के दूसरे नवाब सफदरजंग ने मराठाओं के सरदार मल्हार राव होल्कर को पठानों के विरुद्ध लडने के लिये आमंत्रित किया। मल्हार राव होल्कर ने समर्थन के लिये एक शर्त रखी कि हिंदुओं को उनके ३ तीर्थ स्थल अयोध्या, काशी और प्रयाग वापस दिये जाने चाहिये। १७५६ मे दोबारा शुजाउद्दौला ने अफगानियों के विरुद्ध मराठों से सहायता मांगी, मराठों ने ३ तीर्थ स्थान वापस हिंदुओं को देने की मांग की, किंतु दुर्भाग्यवश मराठाओं को पानीपत के युद्ध मे हार का सामना करना पडा। अनेकों मुस्लिम और यूरोपीय लेखकों ने इस बात को लिखा है कि मीरबाकी ने बाबर के आदेशानुसार रामकोट मे एक मंदिर को तोड कर उस पर मस्जिद बनाई, वो ये भी कहते हैं कि राम जन्म भूमि पर राम की पूजा की परंपरा रही है, और ये भी कहते हैं कि रामनवमी के दिन संपूर्ण भारत से लोग यहां उत्सव के लिये आते हैं। इनमे से कुछ लेखक इस प्रकार हैं ...

" डी हिस्ट्री एंड जियोग्राफी ऑफ इंडिया " जोसफ ताईपेनथालर, द्वारा १७८५;
" सफियाई चहल नसाई बहादुर शाही " बहादुर शाह की पुत्री द्वारा, १७वीं/ १८वीं शताब्दी;
" रिपोर्ट बाई मोंट कमरी मार्टिन " एक ब्रिटिश सर्वेक्षक, १८३८;
" द इस्ट इन्डिया कंपनी गजेटीयर " एडवर्ड फाऊनटेन द्वारा, १८५४;
" हडियोकाई शहादत " मिर्ज़ा जान द्वारा, १८५६;

इसके बाद के अपेक्षाकृत शांतिकाल मे भी ऊधवदास और बाबा रामचरन दास ने नसीरुद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह के शासन काल मे जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयास जारी रखे। १८५७ मे आमिर अली ने जिहाद की घोषणा की और १७० आदमियों के साथ हनुमान गढी पर आक्रमण किया किंतु अपने जिहाद के साथ वह भी हार गया। इसके पश्चात १८५७ की क्रांति आई, जब हिंदू और मुस्लिम दोनों ने मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लडाई की, तब एक मौलवी आमिर अली ने स्थानीय मुस्लिमो को समझा कर रामजन्मभूमि हिंदुओ को सौंपनी के लिये तैयार कर लिया। किंतु अंग्रेजो ने फूट डाल कर राज करने की अपनी रणनीति के द्वारा आमिर अली और बाबा रामचंद्र दास को अयोध्या मे ही एक इमली के पेड पर लटका कर फांसी दे दी। आज भी वह इमली का पेड उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी बना अयोध्या मे खडा है।

सार्जेंट जनरल एडवर्ड बॉल्फर के एन्साइक्लोपिडिया ऑफ इंडिया में मंदिर के स्थान पर तीन मस्जिदों का उल्लेख किया गया है। एक जन्मस्थल पर, दूसरी स्वर्गद्वार पर और तीसरी त्रेता का ठाकुर पर ऊपर बताई गयी। किताबों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी हैं जिसमे इन बातों का उल्लेख आता है, यह किताबें हैं ...

" फ़साना-ए-इबरत " मिर्ज़ा राजम अली बेग द्वारा, १८६७;
" तरीक-ए-अवध " शेख मोहम्मद अली जरत द्वारा, १८६९;
" अ हिस्टोरिकल ऑफ फैजाबाद " पी.कार्नेगी द्वारा, १८७०;
" द गजेटीयर ऑफ द प्रोविंस ऑफ आगरा एंड ओउध " १८७७;
" द इम्पीरियल गजेटीयर ऑफ फैजाबाद " १८८१;
" गुमश्ते-हालात-ए-अयोध्या " मौलवी अब्दुल करीम द्वारा;

1१८८६ मे मौहम्मद असगर की याचिका पर न्यायमूर्ति कर्नल एफ ई ए शॉमायर ने अपने फैसले मे कहा.. " हिंदुओ की पवित्र भूमि पर मस्जिद बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है, किंतु यह कार्य ३५६ वर्ष पूर्व १५३० मे किया गया। अतः इसका आज हल निकालना संभव नही है। " १९३४ मे अयोध्या मे हिंदू मुस्लिम दंगा हुआ, मस्जिद के आस पास हुए दंगे से ढांचे को नुकसान हुआ ...