Saturday, July 21, 2012

ताजमहल एक तेजोमहालय मंदिर है - स्व: श्री पी० एन० ओक (१२१ आकाट्य प्रमाण) भाग - ४

  1. कोई भी मकान बनाने वाला व्यक्ति अत्यंत बारीकी से द्वार, खिड़की, जीना, छज्जे, कक्ष आदि जीतने आवश्यक हो उतना ही बनवाता है । ऐसी अवस्था मे मृतक के लिए ताजमहल वनबाया ही नहीं जा सकता । क्योकि वह परिसर ३८-४० कड़ विस्तार का हैं । उसमे उद्धान, तालाब, जल वितरण योजना, फब्बारे, कुआँ, कई सात मंजिली इमारते, सैकड़ों कक्ष, गौशाला, नक्करखाना आदि कई प्रकार की इमरते है । इन की किसी मृतक को कोई आवश्यकता नहीं होती । ऐसी अवस्था मे कौन ऐसे निरर्थक की म्बर पर करोड़ो रुपये खर्च करेगा ? मृतक के ऊपर लूटने के लिए इतनी फालतू संपत्ति किसके पास होती है ? मानवी स्वभाव से यह बात पूर्णतया विपरीत है । इसी कारण विश्व के अनेकों दिशों मे जहाँ भी विशाल इमारतों मे मृतक प्रत्यक्ष दफनाए गए हो या उनके नाम की झूठी कब्रे बनाई गई उनके बारे मे लोगो को यह जान लेना चाहिए कि वे इमारते मंदिर महल, कार्यालय, विध्यालय आदि किसी अन्य उद्देश्य से बनाई गई थी । सदियो पश्चात जब वे इमारते मुसलमानो के कब्जे मे आई तब उन्होने उन इमारतों में किसी मुद्दे का या तो प्रत्यक्ष दफन किया या एक नकली कब्र वना दी ।
  2. तेजोमहालय शिवतीर्थ होने के कारण उसके पश्चिम दिशा मे यमुना किनारे एक श्मशान बना है । श्मशान के डोम को जयपुर दरबार से वेतन मिला करता था । वहाँ श्मशान का अस्तित्व भी यह सिद्ध करना है कि तेजोमहालय शिवतीर्थ है ।   
  3. ताजमहल के नदी तट वाली लाल दीवार मे नौकाएँ बाँधने के लिए लोहे की कड़ियाँ लगी हुई है । इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि इस पार से उस पार तक नौकाएँ चलती थी । उसी कारण दोनों किनारो पर कुछ घाट अभी बचे हुए है । उनसे ऐसा लगता है कि शाहजहाँ ने तेजोमहालय के पिछवाड़े मे दोनों किनारो पर जो लंबे-चौड़े घाट थे, वे उखड़वाए ताकि हिन्दू जनता वहाँ स्नान, बाजार आदि के लिए आना बंद कर दे । 
  4. शाहजहाँ काले संगमरमर का और एक ताजमहल यमुना के उस पार बनाकर दोनों को एक पुलिया से जोड़ने वाला था ऐसी एक अफवाह शाहजहाँ के चापलूसी सेवक उस समय यूरोप से आए कुछ यात्रियो के कान मे फूँक देते थे । जिस शाहजहाँ ने सफेद संगमरमर का भी ताजमहल नही बनवाया वह काले संगमरमर का ताजमहल कैसे बनवाता ? पुलिया से जुड़े दो ताजमहलों के बहाने शाहजहाँ-मुमताज का लैगिक संभोग करने की कामुक कपोलकल्पना उस अफवाह के पीछे थी । एक मृत स्त्री के शव के पीछे दो-दो ताजमहल बनाना क्या हंसी-मजाक की बात थी ? शाहजहाँ को मृतक के नाम ताजमहल-ही-ताजमहल बनाते रहने के अतिरिक्त और कोई काम-धंधा था कि नहीं ? एक मृतक स्त्री की स्मृति मे यदि शाहजहाँ शाही खजाने से इतना पैसा बहाता रहता तो उसके जनानखाने की शेष ४९९९ स्त्रियाँ रो-पीटकर शाहजहाँ का जीना कठिन कर देती । शाहजहाँ हो इतना कंजूस था कि तेजोमहालय से अपार संपत्ति लूटने के पश्चात भी उस इमारत के ६ मंजिल ऊबड़-खाबड़ बंद करवाने के लिए शाहजहाँ ने हंटर मार-मारकर मजदूरो से नि:शुल्क काम करवाया, और आश्रित राजाओ से पैसे वसूल किये और जयपुर नरेश जयसिंह से पत्थर तथा संगतराश मुफ्त मांगना चाहा । लेकिन जयसिंह ने शाहजहाँ के उन पत्रो का कोई उत्तर ही नहीं दिया । 
  5. ताजमहल की दीवार का संगमरमर हल्के केतकी छटा का है । जब कि कुरान की आयतों वाला संगमरमर सफ़ेद दूध जैसा वर्णन का है । यह असंगति इस कारण हुई कि ऊपर वाली मंजिलों के कक्षो की भूमि पर लगी संगमरमर शिलाएँ निकलवाकर उन्हे कुरान जड़ने के काम मे लाया गया । इतिहासज्ञों ने ऐसे बारीकी से ऐतिहासिक इमारतों का भी अध्ययन नहीं किया । वे केवल इस्लामी बाजारी अफवाहे ही दोहराते रहे । इससे गौरे लोगो को एक सवक यह लेना सीखना चाहिए कि जो बात तर्क से सिद्ध नहीं होती उसके पक्ष में कभी ऐतिहासिक प्रमाण मिल ही नहीं सकते । 
  6. हमने तर्क प्रस्तुत किया था कि क्या जीवित मुमताज के लिए शाहजहाँ ने कोई महल बनाया था? नहीं । तो फिर वह मृत मुमताज के शव के लिए विश्वविस्पात महल का निर्माण कर ही नहीं सकता । हमारा दूसरा तर्क था कि दिल्ली मे सफेदरजंग, हुमायूँ, लोदी सुल्तान, नुगलख सुल्तान, निज़ामुद्दीन आदि के बड़े-बड़े विशाल परिकोर्ट वाले महल रूपी मकबरे बताए जाते हैं । तो वे सुल्तान-बादशाह-बजीर-फकीर आदि जब थे तो किन महलो मे रहा करते थे ? यदि जीवन-भर उनका कोई महल नहीं था तो उनके शव के लिए महल कौन बनाएगा ? इस समस्या का सही उत्तर यह है कि पांडवो से लेकर पृथ्वीराज तक चार हजार वर्षो की लंबी अवधि मे जो महल बने थे उन्हे इस्लामी आक्रामकों ने तोड़ते-फोड़ते जो चंद महल, बाड़े आदि इन गये उनमें कुटुबुद्दिन से लेकर बहादुरशाह जफर तक के मुसलमान रहा करते थे । उनको इस्लामी संपत्ति सिद्ध करने के लिए उन महलो के अंदर झूठी, नकली कब्रे (मुर्दों के दफनाए जाने के टीले )बना दी गई और बाहर कुरान की आयते लिखवा दी गई । अत: इस्लामी तवारीखों मे एक भी किला, बाड़ा, महल, मकबरा, मस्जिद, मजार आदि बनाने का सबूत नहीं मिलता । वे सारे हड़प किये हुए महल है । हुमायूँ, एत्माद्उद्दौला, सादतअली, सफदरजंग आदि हिन्दू राजाओ से जीते हुए उन महलो मे रहते थे । उनकी कब्रे झूठी, नकली, धूल झोकने वाली होने के कारण हो । उन कब्रो पर मृतक का नाम अंकित नहीं होता । इतिहास की यह असीम हेराफेरी तर्क द्वारा ही जाने जा सकती है । उसके विरोध मे जो सबूत प्रस्तुत किए जाते है वे नकली, ढोंगी, झूठे सिद्ध होने अनिवार्य है । यह हमने ताजमहल निर्माण की चर्चा के रूप में इस पुस्तिका में प्रस्तुत किया है । ऐसी अवस्था का घोतक मुहावरा है-अक्ल बड़ी या भैंस । 
  7. ताजमहल के कारीगरों का नाम शाहजहाँ के दरबारी दस्तावेज या तवारीखों मे न मिलने पर अनेक लेखको ने भिन्न-भिन्न कपोलकल्पित नाम लिखने चालू कर दिए । उनमे एक नाम था स्वयं शाहजहाँ का । शाहजहाँ बड़ा प्रवीण कलाकार था, ऐसी मनगढ़ंत बात इतिहास मे धूर्त लोगो मे घुसा दी । किसी ने यह भी नहीं सोचा कि दारू, अफीम आदि पदार्थ तथा पाँच हजार स्त्रियो के जनानखाने मे जीवन बिताने वाला शाहजहाँ वास्तुकला कब और किससे सीखा ? और सारे विश्व के कारीगरों पर मात करने वाली प्रवीणता उसने कैसे कमाई ? उसके बनाए हुए अन्य महल कौन-कौन से हैं ? अध्यापक तथा अन्य इतिहासज्ञों को तर्क द्वारा ऐतिहासिक बातो की बार-बार जांच-पड़ताल करने की यह रीति अपनानी चाहिए । आज तक वह सावधानता न बरतने के कारण सारे विश्व का इतिहास नकली, झूठा हुआ पड़ा हैं । इस्लाम द्वारा निर्मित एक भी विशाल ऐतिहासिक भवन विश्व में होने पर भी इस्लामी वास्तुकला के ढ़ोल इतिहास मे पीटने वाले हजारो ग्रंथ लिखे गए ।  
  8. ताजमहल के पश्चिम मे परकोर्ट के बहार सटे हुए नौमहला नाम के विशाल खंडहर अभी भी देखे जा सकते हैं। शाहजहाँ ने जब जयपुर नरेश के तेजोमहालय परिसर पर हमला बोला तब उस संघर्ष मे नौमहला तोड़-फोड़ दिया गया । 
  9. ताजमहल के परकोर्ट मे पूर्वी द्वार के निकट एक आला बना हुआ है । वह गौशाला है । तेजोमहालय मंदिर के लिए रखी इन गायों को जंगल चरने जाना तथा वापस निजी निवास पर आने की व्यवस्था परकोर्ट के बाहर ही की गई हैं । यदि ताजमहल कब्र होता तो उसमे गायों का क्या काम ?
  10. ताजमहल के पश्चिम मे परकोर्ट के बाहर केसरी रंग के पत्थर के कई भवन एक कतार मे बने हुए हैं । तेजोमहालय शिवतीर्थ के भंडार, भण्डारी, कीर्तनकार, कथाकार, पौराणिक प्रवचनकार आदि के निवास की व्यवस्था थी । उन पर भी गुंबद होने से वह किसी ऐरे-गैरे मुसलमान के कब्र होगी ऐसी कल्पना कर प्रेक्षक लोग उन भवनो को झकते तक नहीं, जब कि वे सारे प्राचीन राजभवन के भाग है ।
  11. हिन्दू महल तथा मंदिरो में चारो दिशाओ मे द्वार रखने की प्रथा है । तदनुसार तेजोमहालय की भी चारो दिशाओ से एक जैसी प्रवेश द्वारो की कमाने हैं ।  
  12. क्या छत्रपती शिवाजी उन बाड़ो में नजरबंद थे ? हमारा अनुमान हैं कि छत्रपती शिवाजी निजी ५५०-६०० सैनिको के साथ १२ मर्ड १६६६ से १७ अगस्त तक जब औरंगजेब द्वारा नजरबंद किये गए थे तो उनके निवास का प्रबंध उन्ही भवनो मे था तथा निकट के ताजमहल के पीछे के यमुना घाट पर उन सबके स्नान, संध्या आदि की सुविधा थी । हमारे अनुमान का आधार यह है कि ताजमहल परिसर आगरा शहर के दक्षिण मे हैं । दक्षिण से आने वाले मराठे आगरे को आते – जाते इसी स्थान पर पहुंचे । सन् १६३१ से ताजमहल के परकोर्ट के अंदर का भाग हो जयपुर नरेश से हड़प कर लिया था । तथापि ताजमहल परकोर्ट के बाहर वाली इमरते तथा तजगंज स्थित अनेकानेक हवेलियाँ सन् १६३१ के पश्चात जयपुर नरेश जयसिंह तथा राजकुमार रामसिंह के स्वामित्व मे ही था । अत: उन्ही मे शिवाजी महाराज तथा उनके स्वामिनिष्ठ साथियो को ठहराया गया था । 
  13. तेजोमहालय का श्री द्वार - हिन्दू महल तथा मंदिरो में चारो दिशाओ में द्वार रखने की प्रथा है । तदनुसार तेजोमहालय उर्फ ताजमहल के हाथी चौक की चारो दिशाओ में द्वार हैं । इनमे से तेजगंज उर्फ ताजगंज का द्वार दक्षिण दिशा में है । ताजमहल परिसर में प्रवेश करने का मुख्य द्वार यही पर है । क्योंकि हाथी चौक के पार तेजगंज द्वार के ठीक सामने लाल पत्थरो का बना वह सात मंजिल विशाल द्वार है जहां प्रवेश के टिकट बेचे जाते है । उस द्वार के पार बाग है और बाग के उस पार संगमरमरी ताजमहल का विशाल द्वार है । इस प्रकार तेजगंज द्वार, टिकट वाला द्वार तथा संगमरमरी द्वार सारे एक के पीछे एक सीधी रेखा मे बने हुए है और तीनों के बीच लगभग सौ-सौ गज का अंतर होगा । तेजगंज की जो गली तेजोमहालय के दक्षिण द्वार के निकट समाप्त हो जाती है उससे आकर आप द्वार मे प्रवेश करने से पूर्व द्वार के ऊपर की तरफ देखे । वहाँ एक रिक्त ताक दिखाई देगा । उस ताक मे सन् १६३१ से पूर्व गणेश की प्रतिमा होती थी । इसी कारण इसका द्वारश्री द्वार यह प्राचीन नाम प्रचलित हैं । तथापि इस्लामी शासन काल मे मुसलमान शासक श्री का अर्थ न जानते हुए उस द्वार को श्री उर्फ सीरी उर्फ सीढ़ी द्वार कहने लगे । वह नाम तथा गणेश जी का रिक्त आसन उस परिसर के हिन्दुत्व के प्रमुख प्रमाण हैं । 
  14. आनंद वाटिकाएँ - तेजोमहालय परिसर में जिलोखाना उर्फ आनंद वाटिकाएँ बनी हुई है । देव दर्शन के लिए तथा बाजार से वस्तुएँ खरीदने के लिए आने वाले लोग उन वाटिकाओ मे बैठकर खानपान किया करते थे । यदि मुमताज की मृत्यु से दुखी-कष्टी शाहजहाँ कब्र के रूप में ताजमहल निर्माण करता तो वह उसमे सार्वजनिक मनोरन्जन की आनंद वाटिकाएँ नहीं बनाता ।  
  15. आगरे के किले मे लगे शीशे - आगरे के लालकिले के एक छज्जे से दूर ताजमहल उर्फ तेजोमहालय सामने स्थित है । राजपूत के शासन मे किले की दीवारों पर छोटे-छोटे गोल शीशे के टुकड़े लगाए जाते थे । उनमे तेजोमहालय का प्रतिबिंब पड़कर सैकड़ो टुकड़ो में उतने ही ताजमहल दिखते । इस्लामी शासन जैसा-जैसा ढीला पड़ता गया वैसे मुगल दरबार के नौकर-चाक आदि वे शीशे खुरचकर निकालते रहे । इस प्रकार शीशमहल के शीशे नष्ट हो गए । फिर भी प्राचीन काल मे उन शीशो मे तेजोमहालय उर्फ ताजमहल की प्रतिमा किस प्रकार दिखती थी उसका नमूना बतलाने के लिए सन् १९३२-३४ में पूरातत्व खाते के एक कर्मचारी न्शाल्ला खान ने चिकने प्लास्टिक से छज्जे कि दीवार पर शीशे के कुछ छोटे-छोटे टुकड़े चिपका रखे थे । उससे प्रेक्षको को कल्पना आ जाती थी कि इस्लाम पूर्व राजपूतो के शासन मे शीशमहल के शीशो में किस प्रकार सैकड़ो प्रतिमाएँ दिखती थी । 
  16. इस्लामी परम्परा में शीशमहलों का कोई प्रयोजन नहीं होता । मुसलमानो में स्त्रियो को पर्दे में रखा जाता है । शीशमहल में विहरने वाली स्त्रियो की तो सैकड़ो प्रतिमाएँ होती हैं । जो इस्लामी परम्परा स्त्री का एक मुखड़ा भी दूसरों की नजरों में पड़े इतना बड़ा पर्दा बरतती है वह शीशमहल बनाकर एक ही स्त्री की सैकड़ो प्रतिमाएँ दर्शाने वाली व्यवस्था कर ही नही सकती । अत: जहां शीशमहल हो, पहचान लेना चाहिए कि वह मूलत: इस्लाम द्वारा बनाइ गई इमारत नहीं हैं । तदनुसार आगरे का लाल किला इस्लाम धर्म की स्थापना होने से सैकड़ो वर्षो पूर्व वना हुआ किला है । अत: उसमे शीशमहल होता था । उन शीशो में तेजोमहालय आदि के प्रतिबिम्व देखे जा सकते है ।उन शीशो का अनुचित लाभ उठाकर धूर्त गाइड (स्थलदर्शक) लोग प्रेक्षको को धौस देते है कि सन् १६५८ से १६६६ तक जब शाहजहाँ औरंगजेब द्वारा आगरे के लालकिले में नजरबंद कर दिया गया था तब वह किले के उस उत्तुंग छज्जे में दीवार की तरफ मुँह कर बैठे-बैठे छोटे-छोटे शीशो मे ताजमहल की छबि देख-देखकर आहें भरता रहता था । यह कहानी सर्वया कपोलकल्पित हैं । क्योकि बंदी बनाया शाहजहाँ गया शाहजहाँ किले के एक अंधेरे कक्ष में नीचे बंद था । उसे ऊपर खुली हवा खाने के लिए शानदार शाही छज्जे में कभी जाने नहीं दिया जाता था तो वह शीशो में ताजमहल की छवी कैसे देखता ? दूसरा मुद्दा यह है कि शीशमहल में शीशे के टुकड़े छत के पास दीवार के ऊपरी भाग मे लगे होते है । उन छोटे-छोटे शीशो मे प्रतिबिम्बित होने वाली छवि देखने के लिए खड़ा रहना पड़ता है और आंखो की द्रष्टि तीक्ष्ण होना आवश्यक होता है । शाहजहाँ जब बंदी बना तब वह व्रद्ध तथा रोग-जर्जर बन चुका था । उसकी कमर मे पीड़ा थी । उसकी द्रष्टि मंद हो चुकी थी । गर्दन टेढ़ी करके खड़े-खड़े वह छोटे शीशो मे ताजमहल की बारीक प्रतिमाएँ दिन-भर ताकते रहने की अवस्था में कतई नहीं था । तीसरा मुद्दा यह था कि जब छज्जे में आराम से बैठकर तकिये पर टेके हुए सामने पूरा ताजमहल सहजताया दिखाई देता था तो किले की दीवार की तरफ मुँह करके छोटे शीशो मे ताजमहल का सूक्ष्म छवि देखने का निरर्थक प्रयास कौन किस कारण से करेगा ? किले के शीशो में ताजमहल का प्रतिबिंब दिखाता हैं । इस कारण शाहजहाँ ही ताजमहल का निर्माता होना चाहिए – यह कहाँ का तर्क हैं ? किले के शीशो के सामने जो भी वस्तु होगी वह शीशे में अवश्य दिखाई देगी । अत: राजपूत शासन से ही आगरे के लालकिले में शीशे लगे थे और तेजोमहालय इमारत भी  प्राचीन काल की बनी होने के कारण उसकी छवी किले के शीशो में पुरातन काल से प्रतिबिम्बित होती रहती है । न्शाअल्लाखान के पुत्र  अनीश अहमद ने मुझे यह बताया कि उसके पिता ने नमूने के तौर पर चिकने प्लास्टिक पर लगे शीशो के छोटे गोल शीशे दीवारों पर चिपका दिए थे । उन्हे मुगली शासन मे लगे शीशे समझना अनुचित है । न्शाअल्लाखाके पश्चात अनीश अहमद भी लालकिले में पुरातत्व खाते का कर्मचारी लगा था । 
  17. ताजमहल के गुंबद पर लोहे की सैकड़ो छोटी गोल कड़ियाँ लगी हैं । उन पर दीपावली जैसे पर्व पर सैकड़ो दीप रखे जाते थे ।  
  18. शाहजहाँ-मुमताज के असीम प्रेम के कारण ताजमहल की निर्मिति बताने वाले लोग और उनके श्रोता कल्पना कर बैठते हैं कि शाहजहाँ-मुमताज बड़ा नाजुक, दयालु, परोपकारी, कोमलहृदयी जोड़ी रही होगी । किन्तु इतिहास में तो दोनों ही दुष्ट, कंजूस, क्रूर तथा अहंकारी व्यक्ति थे, ऐसा ब्यौरा मिलता है । 
  19. अन्याय, असंतोष तथा दरिद्रता का युग - पाठ्य-पुस्तक द्वारा छात्रो को पढ़ाया जाता है कि शाहजहाँ का शासन काल शांति का युग था । अत: उसके शाही खजाने मे अपार संपत्ति इकट्ठी हो गई । उसी से शाहजहाँ ने दिल्ली का लालकिला, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरे का ताजमहल , अहमदाबाद में वर्तमान गवर्नर का निवास स्थान, आगरे के किले के अंदर पाँच सौ इमारते इत्यादि-इत्यादि बनवाई । हम पाठको को सावधान करना चाहते हैं कि ऊपर लिखे दावे सारे झूठ है । शाहजहाँ के शासन मे समृद्धि भी नहीं थी तथा शांति भी नहीं थी । लगभग ३० वर्ष के शासन मे मुगली सेनाएँ ४८ युद्धो में तैनात थी और कई बार इतने भयंकर अकाल पड़े कि गरीब जनता को अपने बच्चे बेचने पड़े, और कुत्ते-बिल्लियो का मांस खाना पड़ा । इन घटनाओ का ब्यौरा लेखक द्वारा लिखित The Taj Mahal is a Temple Palace’ शीर्षक की पुस्तक में प्रस्तुत है । ताजमहल को जब्त करने से शाहजहाँ को वहाँ से मयूर सिंहासन आदि अपार संपत्ति एक बार अवश्य प्राप्त हुई । किन्तु इस प्रकार लुटपाट से होने वाला धन ४८ युद्धो मे खर्च होता रहा। अत: अध्यापक, प्राध्यापक, इतिहासज्ञ, ग्रंथकार, साहित्यिक आदिओ को हम सावधान करना चाहते हैं कि इतिहास की वे इस प्रकार की निर्मूल, निराधार बातो को दोहराया न करे । ध्यानपूर्वक तत्कालीन तवारीखे पड़ने पर उन्हे पता चलेगा कि शाहजहाँ का शासन बड़ा अशांति तथा अन्यायी था । उसमे प्रजा अधिकाधिक दरिद्र होती रही ।
  20. संगमरमरी चबूतरे पर बना केंद्रीय कक्ष अष्टकोना है। उसमे बनी संगमरमरी जाली का आला भी अष्टकोना हैं। स्वयं ताजमहल अष्टकोना हैं । ऐसे अष्टकोनी भूमिका में गोल शिवलिंग ही ठीक मध्य साध सकता हैं। मृत मुमताज की लंबी कब्र अष्टकोने आले में बेढंगी, वेहिसाबी प्रतीत होती है ।यदि ताजमहल शाहजहाँ द्वारा बना होता तो वह अष्टकोना न बनता। वैसे भी अष्टकोना हिन्दू धार्मिक आकार हैं। ताजमहल देखने वाले लोग मुमताज की कब्र के पास शांतचित खड़े होकर ऊपर गुंबद की छत को देखे । वहाँ उन्हे रंगीन चित्र दिखेगा। उसके मध्य मे आठ दिशाओ के निदर्शक आठ वाण, उन्हे घेरे हुए १६ सर्प, उन्हे घेरे हुए ३२ त्रिशूल और उन्हे घेरे हुए ६४ कमल की कलियाँ चित्रित की हुई दिखाई देगी । वे सारे चिन्ह हिन्दू तो है ही किन्तु ८ के पहाड़े की ८, १६, ३२, ६४ आदि संख्याएँ भी हिन्दू परम्परा की है। 
  21. नकली दस्तावेज - ताजमहल में कब्र के पास बैठने वाले मुसलमान मुजावर फारसी में लिखा दस्तावेज रखा करते थे । उसका शीर्षक था तवारीखा-ए-ताजमहल । कुछ वर्ष पूर्व वह दस्तावेज चोरी-छुपे पाकिस्तान भेजा गया । किन्तु १९वी शताब्दी में H. G. Kence आदि कुछ आंग्ल अधिकारीयों ने उस दस्तावेज के जांच-पड़ताल कर उसे नकली घोषित कर दिया । नकली दस्तावेज रखने की आवश्यकता मुसलमानो को इसी कारण पड़ी कि स्वयं शाहजहाँ ने ताजमहल वाने का दावा कही नहीं करा है । उल्टा उसके बदशाहनामे मे स्पष्ट लिखा है कि वह जयपुर नरेश से हड़प लिया गया ।
  22. ताजमहल के गुंबद तथा मीनार पूर्णतया इस्लामी चिन्ह है ऐसा कई लोग बड़े आग्रह से प्रतिपादन करते रहते है । इस्लाम का मूल सर्वप्रथम केंद्र जो कावा है उस पर मीनार भी नहीं और गुंबद भी नहीं हैं । अत: गुंबद को इस्लामी आकार, चिन्ह या प्रतीक मानना ही गलत हैं । ईरान, राफ, येरूशलेम, तुर्कस्थान आदि देशो मे जो गुंबद वाली इमरते हैं वे इस्लाम-पूर्व की हैं क्योंकि इस्लाम को अभी चौदह सौ वर्ष भी पूर्ण नहीं हुए है । गुंबद की निर्माण परम्परा उससे कही प्राचीन हैं । उसी प्रकार कब्र को तो एक भी मीनार की आवश्यकता नहीं होती । तो फिर ताजमहल के कोनो पर चार समान तथा समानान्तर मीनारे क्यों हैं ? वे इसलिए है कि किसी मंगल स्थान, पूजा स्थान के वेदी कोनो पर चार स्तम्भ बनाना यह वैदिक प्रथा है । वैदिक विवाह वेदी तथा सत्यनारायन पूजा वेदी के चारो कोनो पर चार स्तम्भ अवश्य होते हैं । इस प्रकार गुंबद तथा मीनारो की इस्लाम-पूर्व हिन्दू परम्परा बतलाते ही ताजमहल को इस्लामी इमारत समझने वाले लोग एकाएक निजी भूमिका बदलकर यह कहना  आरंभ कर देते है कि ताजमहल बनाने वाले कारीगर, मजदूर इत्यादि हिन्दू होने के कारण ताजमहल हिन्दू शैली का बना होगा ? ऐसा कहने से उन्होने अपनी मूल भूमिका से पलटा खाकर एकाएक विरोधी भूमिका अपना ली इसका उन्हे जरा भी ध्यान नहीं रहता । उन्हे यह जान लेना आवश्यक है कि ताजमहल का गुंबद तथा मीनार पक्के हिन्दू चिन्ह है । ताजमहल के हिन्दू निर्माण के ये ठोस प्रमाण है ।ऊपर दिए विवरण से पाठक समझ गए होंगे कि ऐतिहासिक इमारतों का दो प्रकार से विचार करना चाहिए- (१) उसका आकार, विस्तार, रंग, उसके ऊपर लगे चिन्ह इत्यादि, (२) उसके निर्माण संबंधी दिया जाने वाला ब्यौरा । ऐतिहासिक इमारतों को दिखते समय इन दो बातो पर सूक्ष्म विचार करना बड़ा आवश्यक होता है । उन पर विचार करते समय जरा-सी भी कही असंगति प्रतीत हुए तो समझ लेना चाहिए कि उसके इतिहास में अवश्य कोई न्यून या विकृति है । लोग ताजमहल आदि इमरते दिखने जा रहे हैं ऐसा कहते तो हे किन्तु वे दिखने नहीं अपितु गाइड (स्थलदर्शक) की कही केवल निरधार बाते ही सुनकर वापस लौटते हैं । क्योंकि यदि वे वास्तब में वे इमारत ध्यान लगाकर देखते तो इमारतों के अनेकानेक चिन्हो से उनको पता लगता कि वे इमारते इस्लाम-पूर्व हिन्दूओ की बनाई हुई हैं । अत: प्रेक्षको को सही अर्थ मे मारते वारिकी से दिखकर प्रत्येक मुद्दे पर गहरा विचार करना चाहिए । गाइड की कही बातो को ही सही नहीं समझना चाहिए ।
ताजमहल, कुतुबमीनार आदि विश्व की ऐतिहासिक इमारते इस्लाम द्वारा निर्मित होने की केवल अफवाह-ही-अफवाह है । जिस मुसलमान सुल्तान-बादशाह को उन इमारतों का श्रेय दिया जाता है उनके तबारीखों मे उन इमारतों का उल्लेख तक नहीं है तो निर्माण का ब्यौरा अंकित होना तो दूर ही रहा ।   
तथापि इतिहास लेखको ने फलानी कब्र फलाने सुल्तान ने बनवाई, फलाना मकबरा फलानी बेगम ने बनवाया, फलानी मस्जिद उस बादशाह ने वनबाई ऐसा निरधार हल्ला-गुल्ला मचाकर इतिहास मे इतना अन्याय और अंधेर मचा रखा है कि जहां विश्व मे एक भी दर्शनीय इमारत मुकलमनों की बनबाई हुई नहीं है वहाँ सैकड़ो इमारते उन्होने बेधढ़क किसी-न-किसी मुसलमान के नाम गढ़ दी ।
कई बार तो इतिहासकारो ने ऐसा भी कह रखा है कि अनेक मुसलमान सुल्तान, बादशाह तथा वेगमों ने निजी जीवन-काल मे अपने लिए या अपने वाल-बच्चो के लिए बाड़े नही बनवाए । किन्तु निजी प्रेत के लिए आलीशान महलो जैसी कब्रे अवश्य बनवा रखी । क्या यह तर्कसंगत हैं ? किसी को क्या कोई पता होता है कि वह कब और किस नगर मे मरेगा ? और उसकी मृत्यु के पश्चात उसे उसी विशाल भवन में अवश्य दफनाया जाएगा इसकी भी क्या शाश्वती हो सकती है ? यह अफवाह अज्ञानी इतिहासकारो ने अंधेपन से इस कारण इतिहास में गढ़ दी कि कब्र की आलीशान इमारत बनाने वाला बारिश तो उन्हे कोई दिखाई दिया नहीं तथापि भवन में कब्र तो हैं अत: उन्होने अनुमान किया कि मृतक ने निजी जीवनकाल में ही दूरद्रष्टि से अपने प्रेत के लिए एक महल बना रखा । ऐसे शेख-चिल्लियों की इस्लामी इतिहास में (इतिहासकारो के ऊटपटाँग कथनानुसार) कोई कमी नहीं दिखती । किन्तु उन इतिहासकारो ने यह बात नहीं सोची कि इस्लामी सुल्तान बादशाहो के घरानो में तीव्र आपसी शत्रुता रहती थी । ऐसी अवस्था में यदि कोई शेखचिल्ली अपने आसरे के लिए (निजी जीवनकाल में अन्य काम-धंधे तथा झंझट छोड़कर) एक वैभवशाली कब्र (महल) बनाने मे पल्ले के लाखो रुपये तथा समय नष्ट करने की मूर्खता करे भी तो उसके रिश्तेदार मृतक का शव चील तथा कुत्तो के आगे फेंककर स्वयं उस महल में ठाठ से रहने नहीं लगेंगे इसकी क्या शाश्वती थी ?
प्रचलित इतिहासों में मुझे तो आरंभ से अंत तक ऐसी अनेक अताकिंक बातों की भरमार दिखती है प्रचलित इतिहास इस प्रकार पूर्णतया अविश्वसनीय होने से पग-पग पुनर्विचार की आवश्यकता है ताजमहल संबंधी ऊपर दिया विवरण केवल उदाहरण मात्र समझकर पाठको को प्रत्येक ऐतिहासिक कथन का उसी प्रकार सर्वांगीण विश्लेषण करने का अभ्यास करना आवश्यक हैं ।  

भाग १
भाग २
भाग ३