Sunday, July 15, 2012

ताजमहल एक तेजोमहालय मंदिर है - स्व: श्री पी० एन० ओक (१२१ आकाट्य प्रमाण) भाग - 1

! ॐ नम: शिवाय !
श्रावण मास, कृष्ण पक्ष, दिनांक १६/०७/२०१२, दिन सोमवार (विक्रम संवत् २०६९)
!! शिव जी के चरणों में !!
स्व: श्री पी०एन० ओक द्वारा किए गए ताजमहल पर इस अनुपम शोध को आपके सामने लाने में हमारा कोई व्यावसायिक या अन्य कोई हित लाभ नहीं है । हमारा हमेशा उद्देश्य अपने ब्लॉग द्वारा भारतीय संस्कृति और हिंदूतत्व के बारे में और इसके इतिहास के बारे में लोगों को विशेषकर उन लोगों को जो हिन्दू और भारतीय होते हुए, लेकिन अपने स्वर्णिम इतिहास को ना जानने के कारण आज अपने हिन्दू होने पर और भारतीय होने पर शर्म महसूस करते हैं । 
ये लेख नहीं अपितु स्व: श्री पी०एन० ओक द्वारा किए गए ताजमहल पर शोध का एक अंश मात्र है । जो आपको ताजमहल को देखने का एक नया नज़रिया प्रदान करेगा ।
स्व: श्री पी०एन० ओक जी ने अपने शोधों से यह सिद्ध कर दिया कि कैसे विदेशी आक्रमणकारिओ ने हमारे भारतीय इतिहास को विकृत किया और किस तरह हमारे पूर्वजों की धरोहरों, मंदिरों को लूटा और उन्हे अपने नाम से इतिहास मे दर्ज कराया इन्होने अपने शोधों में यह भी सिद्ध किया है की आज जो इतिहास हमे पढ़ाया जाता है वोह बिलकुल झूटा है । सर्वप्रथम इन्होने ही बताया की ताजमहल (तेजोमहालय मंदिर है), दिल्ली का लाल किला (लाल कोट है), आगरे का लाल किला (राजपूत भवन है), हुमायूँ का मकबरा, लखनऊ के इमामबाड़े अथवा जितने भी भवन, इस्मारक आदि जिन्हे आज किसी बादशाह या नवाब के नाम से आज जाने जाता हैं । वे हिन्दू राजा महाराजाओं द्वारा ही बनबाए गए है और सबसे शानदार बात यह है कि इनके द्वारा किए गए शोधों प्रमाणो में इतनी सत्यता है कि आज तक इनको कोई काटने का साहस भी नहीं पाया है । इसके साथ ही यह दु:ख कि बात भी है कि तुष्टीकरण की राजनीति के चलते सरकार ने इनके शोधों और प्रमाणो को कोई मान्यता नहीं दी और यहाँ तक इनकी लिखी गयी शोधपरक किताबों को बैन भी करबा दिया । आज हमारी ज़िम्मेदारी बनती है की हम स्व: श्री पी०एन० ओक जी के अधूरे कार्य को आगे बढ़ायेँ और अपने इतिहास अपने पूर्वजों के शौर्य गाथा को समाज के सामने लाएँ ।
यह शोध लेख स्व: श्री पी०एन० ओक जी की पुस्तक ताजमहल एक तेजोमहालय मंदिर से है । यह शोध लेख आपको अवश्य ताजमहल देखने का नया नज़रिया प्रदान करेगा ।  मेरी कोई औकात नहीं की मैं स्व: श्री पी०एन० ओक जी के शोध पर लेख लिख सकूँ । मेरा तो योगदान सिर्फ इसको Unicode करने भर का है, इसका जो कुछ भी श्रेय है वोह सिर्फ स्व: श्री पी०एन० ओक को ही जाता है ।
! इस महान विभूति को मेरा शत शत नमन !
Unicode by : कमल कुमार राठौर
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ताजमहल देखने के लिए विश्व भर से हजारो पर्यटक आते रहते है। वास्तव मे उन्हे या विदित कराना चाहिए कि ताजमहल इस्लामी मकबरा न होकर तेजोमहालय नाम का एक शिव मंदिर है जो तत्कालीन राजा जयसिंह से पंचम मुगल सम्राट् शाहजहाँ ने छीन लिया था । अत: ताजमहल को शिव मंदिर की द्रष्टि से देखना चाहिए न कि एक इस्लामी मकबरे कि द्रष्टि से । दोनों मे आकाश-पाताल-जैसा अंतर है । कहाँ कब्र ओर कहाँ देवालय ! जब आप इसे इस्लामी मकबरे कि द्रष्टि से देखते है तब इसकी महत्ता, वैभव और सुंदरता निरर्थक एवं निराधार लगती है, परंतु ज्यो ही इसे एक मंदिर की द्रष्टि से पर्यवेक्षण करेगे तब आप निश्चय ही इसकी परिखाएँ, छोटी-छोटी पहाड़ियाँ, भवन के विविध दालान, झरने, फब्बारे,शानदार वगीचे, सैकड़ो कमरे, कमानो से सज्जित बरामदे, चबूतरे, बहुमंजिले-महल, गुप्त एवं बंद कक्ष, अतिथिशाला, आश्वशाला, गौशाला,गुम्बद पर और वर्तमान नकली कब्र (जहाँ कभी शिव लिंग होता था ) की बाहरी दीवारों पर खुदे पवित्र ॐ अक्षर की ओर दृष्टि डालेगे ही । इसके विभिन्न प्रमाण अधिक गहराई से अध्ययन करने हेतु पाठक पी० एन० ओक की पुस्तक ताजमहल एक तेजोमहालय मंदिर है पढ़े । इस पुस्तिका मे हम उस सनसनीखेज ऐतिहासिक शोध को संक्षिप्त मुद्दो के रूप मे प्रस्तुत कर रहे है ।

तथ्यों से सम्बंधित महत्वपूर्ण लिंक
http://tajmahal.gaupal.in/bhumika
अमेरिकन प्राध्यापक (Marvin Mills) के द्वारा पुष्ठी
             
ताजमहल : तेजोमहालय शिव मंदिर है
  1. ताजमहल नाम का उल्लेख औरंगजेब तक के किसी भी तबारीखों मे या दरबारी दस्तावेज़ो मे कही भी नही मिलता है ।  
  2. ताज-ए-महल याने महलो का ताज कहने का प्रयास करना हास्यास्पद है, क्योकि यह तो एक इस्लामी कब्र है । कब्र को कभी महल नही कहा जाता । 
  3. इसका अंतिम पद महल इस्लामी शब्द ही नही है, क्योकि अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक फैले विस्तृत इस्लामी प्रदेशों मे महल नाम की एक भी इमारत नही है । 
  4. सामान्य धारणा यह है कि इसमे दफनाई महिला मुमताज़ महल के नामानुसार इसका नाम ताजमहल रखा गया है यह दो द्रष्टियो से असंगत है । एक बात तो यह है कि शाहजहाँ की उस पत्नी का नाम मुमताज़ महल नही अपितु मुमताज़-उलू-जमानी था। द्वितीयत: मुमताज़ की स्मर्ती मे बने उस भवन को नामांकित करते समय दो आध अक्षर मुम उड़ा देना हास्यास्पद है। एक महिला के नाम के आरम्भ के दो अक्षर हटाकर शेष हिस्सा इमारत का नाम बनता है, यह किस व्याकरण का नियम है ?  
  5. फिर भी उस महिला का नाम मुमताज़ होने के कारण यदि उससे इमारत का नाम पड़ता तो वह इमारत तामहल कहलाती, न कि ताजमहल 
  6. शाहजहाँ के समय भारत मे आए हुए यूरोप के कई पर्यटको ने इस भवन का उल्लेख ताज-ए-महल नाम से किया है जो शिव मंदिर सूचित करने वाला संस्कृत शब्द तेजो महालय का बिगड़ा रूप है । स्वयं मुगल बादशाह शाहजहाँ और औरंगजेब के दरबारी दस्तावेजो मे तबारीखों मे ताजमहल शब्द का उल्लेख भी नही है क्योकि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल संस्कृत शब्द है । 
  7. कब्र का अर्थ विशाल इमारत नही अपितु केवल इमारत के अंदर स्थित मृतक के शव पर बना टीला होता है । इससे पाठको को ज्ञात होगा कि हुमायूं, मुमताज़, एतमाद्-उद्-दौला, सफदरजंगआदि व्यक्ति हिन्दुओ से कब्जा किये हुए विशाल भवनो मे ही दफनाए गये है ? 
  8. यदि ताजमहल मकबरा होता तो उसे महल नही कहा जाता,क्योकि महल मे तो सजीव व्यक्ति ही रहते है ।  
  9.  चूँकि ताजमहल का उल्लेख शाहजहाँ तथा औरंगजेब-कालीन किसी भी मुगल लेखो मे नही है, ताजमहल के निर्माण का श्रेय शाहजहाँ को देना उचित नही । उन्होने ताजमहल शब्द का उल्लेख जान-बूझकर इसलिए टाल दिया है क्योकि वह मूलत: तेजोमहालय ऐसा पवित्र हिन्दू संस्कृत शब्द है। 
  10. मंदिर परम्परा - ताजमहल संस्कृत शब्द तेजोमहालय यानि शिव मंदिर का अपश्रंश होने से पता चलता है कि अग्रेश्वर महादेव अर्थात अग्रनगर के नाथ ईश्वर शंकर जी को यहाँ स्थापित किया गया है। 
  11. शाहजहाँ के पूर्व समय से जब ताज एक शिव मंदिर था तब से ही जूते खोलकर अंदर प्रवेश करने की परम्परा आज भी मौजूद है । यदि यह भवन मकबरा ही होता तो इसमे प्रवेश करते समय जूते उतार देने की आवश्यकता ही नही पड़ती बल्कि कब्रस्तान मे जूते पहनना तो आवश्यक होता है ।
  12. पर्यटक देख सकते है कि संगमरमरी तहख़ानो मे बनी मुमताज़ के कब्र कि आधारशिला सादी सफेद है जबकि पड़ोस की शाहजहाँ की कब्र और परी मंजिल मे बनी शाहजहाँ-मुमताज़ की कब्रो पर हरे बेल-बूटे जड़े है । इससे निष्कर्ष यह निकलता है कि वह सफेद संगमरमरी शीला मूलत: शिवलिंग कि आधारशीला थी । वह अभी भी अपनी जगह पर है और मुमताज़ वहाँ दफनाए जाने की कहानी कपोलकल्पित है ।  
  13.  संगमरमरी जाली के शिखर पर बने  कलश कुल १०८ है जो संख्या पवित्र हिन्दू मंदिरो की परम्परा है ।
  14. ताजमहल के संगमरमरी तहखाने के नीचे जो लाल पत्थर की बनी मंजिले शाहजहाँ द्वारा उबड़-खाबड़ चुनवा दी गई है उनमे से कई बार पुरातत्वीय कर्मचारियो को मूर्तियाँ मिली है । दरारों मे से अंदर झाकने वाले व्यक्तियों को अंदरूनी अंधरे दालानों मे मूर्तियो से अंकित स्तम्भ भी दिखाई दिए थे । ऐसे कई रहस्य सरकारी आदेशो द्वारा गुप्त रखे गये है । सरकारी पुरातत्व कर्मचारी तथा अन्य पुरातत्ववेत्ता, ऐतिहासिक तथ्यो को उजागर करने के अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हो पर्यवेक्षकरने के बजाय, इस सम्बन्ध मे विचारपूर्वक, सभ्य तरिके एवं एवं कूटनीति से चुप्पी साधे बैठे हुए है ।
  15. भारतवर्ष मे बारह ज्योतिलिंग अर्थात मुख्य शिव मंदिर है । यह तेजोमहालय याने तथाकथित ताजमहल उनमे से एक है, क्योकि ताजमहल की ऊपरली किनारे मे नाग-नागिन की आकृतियाँ जड़ी होने से लगता है कि यह मंदिर नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था । शाहजहाँ के अधिग्रहण के बाद से इसमे अपनी हिन्दू महत्ता खो दी । 
  16. विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक वास्तुकला के विवेचनात्मक प्रसिद्ध ग्रन्थ मे उल्लिखित विविध प्रकार के शिवलिंगों मे तेजोलिंग का उल्लेख करता है जो हिन्दुओ के आराध्यदेव शिवजी का चिन्ह होता है । वैसा तेजोलिंग ही ताजमहल के अंदर प्रतिष्ठित हुआ था । अत: यह तथाकथित ताजमहल तेजोमहालय ही है । 
  17. आगरा शहर जहां ताजमहल अव स्थित है वह प्राचीनकाल मे शिवपुजा का केन्द्र रहा है । यहाँ की धार्मिक जनता श्रावण मास मे रात्रि का भोजन करने से पूर्व पाँच शिव मंदिरो के दर्शन लेती थी । पिछली कुछ शताब्दियों मे आगरा के निवासियों को वल्केश्वर, पृथ्विनाथ,मन-कमेश्वर और राज-राजेश्वर इन चार शिव मंदिरो के ही दर्शन से संतुष्ट होना पड़ रहा है,क्योकि उनके पूर्वजो का आराध्य पाँचवे मंदिर का देवता उनसे छीना गया । स्पष्टत: अग्रेश्वर महादेव नाग नागेश्वर ही उनके पांचवे आराध्य थे जो तेजोमहालय अर्थात तथाकथित ताजमहल मे विराजमान थे ।  
  18.  आगरे की आबादी ज़्यादातर जाटो की है । वे भगवान शंकर को तेजाधी कहकर पुकारते है । इलस्ट्रेटेड वीकली आफ इण्डिया, २८ जून, १६७१ जो जाट विशेषांक था, कहता है कि जाटो के तेज मंदिर होते थे । शिवलिंग के विविध प्रकारो मे तेजोलिंग भी एक है । इससे स्पष्ट होता है कि ताजमहल तेजोमहालय अर्थात शिव का विशाल मंदिर है । 
  19. दस्तावे के साक्ष्य - शाहजहाँ का दरवारी वृत्त शाहजहाँनामा अपने खण्ड एक के पृष्ठ ४०३ पर कहता है कि अतुलनीय वैभवशाली गुम्बदयुक्त एक भव्य प्रासाद को इमारत-ए-आलीशान या गुम्बजे (जो राजा मानसिंह के प्रासाद के नाम से जाना जाता था) मुमताज़ को दफनाने के लिए जयपुर के महाराज जयसिंह से लिया गया।           
  20.  ताजमहल के प्रवेश द्वार के साथ लगे पुरातत्वीय शिलाओ पर हिन्दी, उर्दू, अँग्रेजी आदि भाषाओ मे लिखा है कि मुमताज़ की कब्र के रूप मे शाहजहाँ ने सन् १६३१ से १६५३ तक ताजमहल का निर्माण करवाया । किन्तु उक्त  उस कथन मे किसी ऐतिहासिक आधार का तो उल्लेख ही नही है । यह उसका एक बड़ा दोष है । दूसरा मुद्दा यह है कि मुमताज़ महल नाम ही झूठा है । मुगली दस्तावेजो मे मुमताझ-उलू-जमानी नाम उल्लिखित है । तीसरा मुद्दा यह है कि ताजमहल निर्माण की अवधि जो २२ वर्ष कही गई है वह मुगल दरबार के दस्ताबेजो पर आधारित होकर टँल्हरनिए नाम के एक ऐरे-गेरे फ्रेंच सर्राफ के कुछ ऊटपटाँग, संभ्रमित संस्मरणों से निकाला गया निराधार निष्कर्ष है ।अन्य प्रमाणो का विश्लेषण करने पर टँल्हरनिए का कथन गलत सिद्ध होता है । 
  21. अपने पिता शाहजहाँ को लिखा औरंगजेब का पत्र टँल्हरनिए के दावे को झूठा साबित कर देता है । औरंगजेब का वह पत्र आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-अकबराबादी (सईद अहमद, आ०, रा स संपादित, सन् १९३१,पृष्ठ ४३, फुटनोट २) मे अन्तर्भूत है । सन् १६५२ के उस पत्र मे औरंगजेब ने स्वयं लिखा है कि मुमताज़ की कब्र परिसर की इमारते सात मंजिलों वाली थी और वे इतनी पुरानी हो गई थी कि उनमे से पानी टपकता था और गुम्बद के उत्तरी भाग मे दरार पड़ी थी । अत: औरंगजेब ने स्वयं अपने खर्चे से उन भवनो को तत्काल मरम्मत करने की आज्ञा देकर शाहजहाँ को सूचित किया कि यथावकाश इन भनों की व्यापक मरम्मत की जाए । इससे सिद्ध होता है कि शाहजहाँ के समय मे ही ताज इतना पुराना हो गया था कि उसकी तत्काल मरम्मत करने की आवश्यकता पड़ी । 
  22. दिसम्बर १८ सन् १६३३ के शाहजहाँ द्वारा भेजे दो पत्र (फर्मान्) महाराजा जयसिंह के कपड़द्वार नाम के जयपुर दरबार के गुप्त विभाग मे सुरक्षित है । उन्हे आधुनिक क्रमांक १७६-७७ दिये गये है । सारी संपत्ति सहित ताजमहल का शाहजहाँ द्वारा अपहरण किये जाने की अपमानकारी घटना उन पत्रो मे उल्लिखित होने से जयपुर नरेश की असमर्थता छिपाने के हेतु वे पत्र गुप्त रखे गये । 
  23. राजस्थान के राजपूत रियासतों के ऐतिहासिक दस्तावेज बीकानेर में सरकारी अभिलेखागार में रखे गये हैं । उनमें शाहजहाँ द्वारा जयसिंह को भेजे तीन पत्र हैं । एक चौथा पत्र भी भेजा गया था ऐसा उन तीन पत्रों में से एक में उल्लेख है । उनमें जयसिंह को मकराने के संगमरमर तथा संगतराश भेजने के लिए कहा है । सारी अंतर्गत  संपत्ति सहित ताजमहल हड़प करने के पश्चात उसमें मुमताज़ की कब्र करने और कुरान की आयतें जड़ाने के हेतु शाहजहाँ जयसिंह से ही संगमरमर तथा संगतराश मँगवाने की धृष्टता कर रहा था । यह देखकर जयसिंह को बड़ा क्रोध चढ़ा । उसने न ही पत्रों का कोई उत्तर दिया और न ही संगमरमर या संगतराश भेजे । इतना ही नहीं अपितु संगतराश शाहजहाँ के पास अपने आप भी न जा सकें इस उद्देश्य से उन्हें बंदी बना डाला । 
  24. मुमताज़ की मृत्यु के लगभग दो र्ष के अंदर शाहजहाँ ने संगमरमर की मांग करते हुए जयसिंह को तीन आदेश भेजे । यदि वास्तव में २२ वर्ष की कालावधि में शाहजहाँ ने ताज निर्माण करवाया होता तो १५ या २० वर्षों के बाद ही संगमरमर की आश्यकता पड़ती न की मुमताज की मृत्यु के तुरंत बाद । बना बनाया ताजमहल हथियाने के कारण ही मुमताज की मृत्यु के तुरंत पश्चात शाहजहाँ को उसमें कुरान जड़ाने के लिए संगमरमर की आश्यकता पड़ी ।
  25. इतना ही नही, इन तीनों पत्रो मे न ताजमहल, न मुमतज और न उसके दफन का कोई उल्लेख करते है । उसकी लागत एवं पत्थर की मात्रा का भी उनमे उल्लेख नही है । ताज को हस्तगत करने के बाद कब्र बनाने तथा आवश्यक मरम्मत के लिए कुछ थोड़े संगमरमर की आवश्यकता पड़ी । क्रुद्ध जयसिंह की मिन्नते करके प्राप्त होन वाले अल्पस्वरूप संगमरमर से ताजमहल जैसी विशाल इमारत समुच्चय का शाहजहाँ द्वारा निर्माण वैसे भी असंभव था ।  
  26. यूरोपियन पर्यटको के वृतांत - टँव्हरनिए नाम के फ्रांस के एक सर्राफ ने अपनी यात्रा टिप्पणी मे उल्लेख किया है कि शाहजहाँ ने मुमताज़ को ताज-इ-मकान के निकट दफनाने का कारण यह था कि वहाँ आने वाले विदेशी यात्री उस दफन स्थल की तारीफ करे । वह ताज-इ-मकान छ्ह चौक वाला बाजार था । लकड़ी न मिलने के कारण शाहजहाँ को कमानो की ईटों के ही आधार देने पड़े । कब्र पर जो रकम खर्व हुई उससे मचान का खर्चा सर्वाधिक था । कब्र का निर्माण-कार्य मेरी उपस्थिती मे आरम्भ होकर मेरी उपस्थिती मे ही समाप्त हुआ । बीस हजार मजदूर लगातार २२ वर्ष तक काम करते रहे ।' टँव्हरनिए के पूर्वोवत कथन का इतिहासकारो मे गलत अर्थ लगाया है । टँव्हरनिए को भारतीय भाषाओ का अज्ञान होने के कारण वह बाजार को ही ताजमहल समझा । उस बाजार मे आने वाले विदेशी यात्री जिस मानसिंह मंजिल को दंग होकर देखते थे उसमे शाहजहाँ ने मुमताज़ को इसी उद्देश्य से दफनाया कि दफनस्थल का सर्वत्र बोलबाला हो । इससे यह बात स्पष्ट है कि एक बड़ा सुंदर मानसिंह महल वहाँ आरम्भ से ही बना था । वास्तव मे ताज-इ-कान (उर्फ ताजमहल यानि तेजोमहालय) यह उस इमारत का नाम है जिसमे मुमताज़ की कब्र है । वह अति सुंदर प्रेक्षणीय गुम्बद वाली इमारत थी । ऐसा स्वयं शाहजहाँ के बादशाहनामे मे वर्णन है । तथापि एक पराए अनजान सर्राफ यात्री के नाते टँव्हरनिए बाहरले बाजार को ही ताज-इ-मकान समझकर उसके निकट बनी मुमताज़ की कब्र बिदेशी यात्रीओ का मन लुभाया करती ऐसा लिखता है । मचान के लिए जिस शाहजहाँ को फट्टे, खम्भे आदि प्राप्त नही थे वह भला संगमरमरी ताजमहल क्या बनवाएगा ! कमानो के ऊपर लगी मूर्तियाँ, संस्कृत शिलालेख आदि उतारकर वहाँ कुरान जड़ देने के लिए कमानो को हजारो ईटों का आधार देना पड़ा । अत: एक प्रकार से मचान के रूप मे चौड़ी दीवार के आकार की ईटों की राशि तेजोमहालय के चारों ओर गुम्बद तक खड़ी करनी पड़ी । उस पर खड़े होकर कुरान जड़ने का खर्चा मामूली था । उसकी तुलना मे हजारो ईटों का चौड़ा उत्तुंग मचान खड़ा करना वड़ा खर्चीला कार्य था ।  अत: टँल्हरनिए ने ठीक ही लिखा है कि कब्र पर जितना खर्चा हुआ उसमे मचान का खर्चा अत्यधिक था । यदि शाहजहाँ संगमरमरी ताजमहल सचमुच बनाता तो उसकी तुलना मे मचान का खर्चा अत्यल्प होता ।  ताजमहल का निर्माण-कार्य टँव्हरनिए की उपस्थिती मे ही आरम्भ हुआ और समाप्त हुआ ऐसा टँव्हरनिए ने लिखा है । मुमताज़ सन् १६३१ के जून मे मरी । किन्तु टँल्हरनिए भारत मे पहली बार सन् १६४१ मे पहुंचा । अत: मुमताज़ की कब्र का कार्य टँव्हरनिए की उपस्थिती मे आरम्भ हुआ यह टँव्हरनिए का कथन झूठा साबित होता है उसी प्रकार वह निर्माण-कार्य २२ वर्षो मे समाप्त हुआ यह टँव्हरनिए की टिप्पणी भी झूठी है क्योकि टँव्हरनिए भारत मे लगातार २२ वर्ष कभी रहा ही नही । इसी कारण टँव्हरनिए की टिप्पणी विश्वास योग्य नही है । उसका यात्रा-वर्णन गपशप और अंटसंट धौसबाजी से भरा रहता है, उस पर विश्वास नही करनी चाहिए ऐसा इतिहासकारो का प्रकट मत ठीक ही है । हजारो मजदूर काम पर अवश्य लगे थे किन्तु वे ताजमहल के निर्माण के लिए नही बल्कि कब्र वाली मंजिल को छोड़कर शेष साढ़े सात मंजिली इमारतों के सैकड़ो कमरे, छज्जे, जीने, द्वार, खिड़कियाँ आदि चुनबाकर बंद करवाने मे लगे थे । इस प्रकार टँव्हरनिए की टिप्पणी से भी यह सिद्ध होता है कि शाहजहाँ ने बना-बनाया ताजमहल जयसिंह से हड़प लिया ।
  27. पीटर मंडी नाम का एक अंग्रेज़ पर्यटक शाहजहाँ के काल मे आगरा नगर मे आया था । इसने निजी संस्मरण लिखे है । मुमताज़ की मृत्यु के पश्चात एक-डेढ़ वर्ष मे ही वह विलायत को लौट गया । तथापि उसने लिखा है कि आगरा नगर तथा आसपास प्रेक्षणीय इमारतों मे मुमताज़ तथा अकबर के दफन-स्थल प्रेक्षणीय है ।
  28. द लायट नाम के हालैण्ड के एक अफसर ने उल्लेख किया है कि आगरे के किले से एक मील की दूरी पर शाहजहाँ के पूर्व ही मानसिंह भवन था । शाहजहाँ के दरबारी इतिवृत्त बादशाहनामा  मे उसी मानसिंह भवन मे मुमताज़ को दफनाने की बात लिखी गई है ।  
  29.  तत्कालीन फ्रेंच पर्यटक बनिए ने लिखा है कि ताजमहल के (संगमरमरी) तहखाने मे चकाचौंध करने वाला कोई द्रश्य था । और उस कक्ष मे मुसलमानो के अतिरिक्त किसी अन्य को प्रवेश नही करने देते थे । इससे स्पष्ट है कि वहाँ मयूर सिंहासन, चाँदी के द्वार, सोने के खंम्भे इत्यादि थे और ऊपरले अष्टकोणी कक्ष मे शिवलिंग पर पानी टपकने वाला सुवर्ण घट और संगमरमरी जालियो मे जवाहरात इत्यादि थे । इतनी सारी संपत्ति हड़प करने के उद्देश्य से ही तो शाहजहाँ ने मृत मुमताज़ को उस मानसिंह महल मे ही दफनाने की धृष्टता तथा दुराग्रह किया ताकि उस बहाने उस इमारत पर कब्जा कर अन्दर की संपत्ति लूटी जा सके ।  
  30.  जे० ए० मॅण्डेलस्लो ने मुमताज़ की मृत्यु के सात वर्ष पश्चात Voyages and Travels Into the East Indies नाम के निजी पर्यटन के संस्मरणों मे आगरे का उल्लेख तो अवश्य किया है किन्तु ताजमहल निर्माण का कोई उल्लेख नही किया । टँल्हरनिए के कथन के अनुसार २० हजार मजदूर यदि २२ वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो मॅण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण-कार्य का उल्लेख अवश्य करता ।
  31. ताजमहल के हिन्दू निर्माण का साक्ष्य देने वाला काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वस्तु-संग्रहालय (Museum) के ऊपरितम मंजिल मे धरा हुआ है । वह सन् ११५५ का है । उसमे राजा परमदिदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा यह कहा गया है कि स्फटीक जैसा शुभ्र इंदुमौलीश्वर (शंकर) का मंदिर बनाया गया । (वह इतना सुंदर था कि ) उसमे निवास करने पर शिवजी को कैलास लौटने की इच्छा ही नहीं रही । वह मंदिर आश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को बनकर तैयार हुआ । ताजमहल के उधान मे काले पत्थरो का एक मण्डप था ऐसा एक ऐतिहासिक उल्लेख है। उसी मे वह संस्कृत शिलालेख लगा था ऐसा अनुमान है । उस शिलालेख को कनिंगहम ने जान-बूझकर वटेश्वर शिलालेख कहा है ताकि इतिहासज्ञों को भ्रम मे डाला जा सके और ताजमहल के हिन्दू निर्माण का रहस्य गुप्त रहे । आगरे से ७० मील की दूरी पर वटेश्वर मे वह शिलालेख नही पाया गया था । अत: उसे वटेश्वर शिलालेख कहना अंग्रेजी पड्यंत्र है ।  
  32. शाहजहाँ ने ताजमहल परिसर मे जो तोड़मरोड़ और हेराफेरी की उसका एक सूत्र सन् १८७४ मे प्रकाशित पुरातत्व खाते (आर्किओलोजिकल सर्वे आफ इण्डिया) के वार्षिक वृत्त के चौथे खण्ड मे पृष्ठ २१६-२१७ पर अंकित है । उसमे लिखा है कि हाल मे आगरे के वस्तुसंग्रहालय  के आँगन मे जो चौखुंटा काले वसस्ट प्रस्तर का स्तम्भ खड़ा है वह स्तम्भ तथा उसी की जोड़ी का दूसरा स्तम्भ, उसके शिखर तथा चबूतरे सहित कभी ताजमहल के उधान मे प्रस्थापित थे । इससे स्पस्ट है कि लखनऊ के वस्तुसंग्रहालय मे जो संस्कृत शिलालेख है वह भी काले पत्थर का होने से ताजमहल के उधानमण्डप मे प्रदर्शित था।  
  33. गज प्रतिमाएँ - ताजमहल प्रांगण मे जहाँ टिकट निकाले जाते है उस बड़े चौक को हाथी चौक कहते है । इससे हमारा अनुमान है कि उस लाल पत्थर के विशाल द्वार के दोनों ओर बड़ी गज प्रतिमाएँ थी जो शाहजहाँ ने नष्ट करा दी । ऐसे गज प्रतिमाओ की शुण्डे कमान के नोक पर जुड़ी होती थी । उसे गजलक्ष्मी कहा जाता है । Thomas Twining की Travels in India A Hundred years ago नाम की पुस्तक है । उस पुस्तक के पृष्ठ १९१ पर उल्लेख है कि नवम्बर  १७९४ मे Twining ताज-इ-महल के प्रांगण मे पालकी से उतरा और कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर वह (ताज-उधान के) भव्य द्वार पर पहुँचा । उस द्वार के सम्मुख हाथी चौक था । 
  34. ताजमहल के बाहरी कमानो पर कुरान के १४ अध्याय जड़ दिये गये है । जब शाहजहाँ ने इतनी लिखवाई कराई तो क्या वह ताजमहल के निर्माण की बात नही करता ? उसने वैसा कोई उल्लेख इसलिए नही किया कि उसने ताजमहल वनवाया ही नही । 
  35.  ताजमहल बनवाना तो दूर ही रहा, शाहजहाँ ने जहाँ-तहाँ नीले फारसी अक्षरों मे कुरान जड़वाकर ताजमहल की चन्द्रमा जैसी धबल आभा मलीन कर दी । अमानत खान शिराझी ने वे फारसी अक्षर लिखे ऐसा बाहरी विशाल द्वार पर शिलालेख है । ताजमहल के संगमरमरी चबूतरे पर जो भव्य प्रवेश द्वार है उसके चोटी पर जो कुरान की आयते जड़ी हुई है उन्हे ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि ये रंग-बिरंगे टुकड़े-टाकड़ो मेँ बाद मे जड़ी गई है । यदि शाहजहाँ स्वयं ताजमहल का निर्माता होता तो बेजोड़ भिन्न-भिन्न छटाओं के टुकड़ो से  कुरान जड़वाना नही पड़ता ।