Thursday, September 13, 2012

गाय की उपयोगिता सिद्ध करता - आधुनिक विज्ञान

गावः पवित्रं परमं गावो मांगल्यमुत्तमम्।
गावः स्वर्गस्य सोपानं गावो धन्याः सनातनाः।।
'गायें परम पवित्र, परम मंगलमयी, स्वर्ग का सोपान, सनातन एवं धन्यस्वरूपा हैं।'
(अग्नि पुराणः 292.18)

हमारे ऋषि-मुनिओं ने गाय के महत्व को हजारों बर्ष पहले ही जान लिया था ! उन्होंने अपने ज्ञान को मानवजात के कल्याण के लिए वेदों में लिपिबद्ध किया और गाय पालन और गाय रक्षा पर विशेष जोर दिया ! इसलिए यूँही हम गाय को माँ नहीं कहते उसके गुणों के कारण ही माँ का दर्जा दिया गया है ! किसी ने सच ही कहा है की गाय भारतीय संस्कृति की प्राण है ! अत: यदि संस्कृति को बचाना है तो गाय को बचाना ही होगा !

गाय मानव-जीवन के लिए परम उपयोगी हैं । गाय की महत्ता का वर्णन शास्त्रो में मिलता है । अब वैज्ञानिको ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया हैं । दूध के अतिरिक्त गाय से प्राप्त अन्य सब द्रव्य भी मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । 

गाय का घी
गाय का घी और चावल की आहुती डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे – एथिलीन ऑक्साइड, प्रोपिलीन ऑक्साइड, फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं । इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है, जो शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं । वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षो का आधार मानते है । आयुर्वेद विशेषज्ञो के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनो में गाय के घी की दो – दो बूंद डाले और रात को नाभि और पैर के तलुओ में गौघृत लगाकर लेट जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी ।

गौघृत में मनुष्य – शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी  विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम छमता हैं । अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं । सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं ।
(रूसी वैज्ञानिक शिरोविच)
गौमूत्र
गौमूत्र सभी रोगो विशेषकर किडनी, लीवर, पेट के रोग, दमा व पीलिया के लिए रामबाण औषधि हैं। इसमे २४ प्रकार के रसायन जैसे पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ्लोराइड, यूरिया, अमोनिया, लौह तत्व, ताम्र तत्व, सल्फर, लैक्टो आदि पाये जाते हैं । २५ जून २००२ को भारत को गौमूत्र का पेटेंट मिला । आज सम्पूर्ण विश्व में एंटीकैंसर ड्रग तथा सर्वोत्तम एंटीवायोटिक एवं हानिरहित सर्वोत्तम कीटनाशक गौमूत्र है । इस महौषधि के समतुल्य कोई औधी नहीं हैं ।

गौमूत्र रक्त में बहनेवाले दूषित किटाणुओ को नष्ट करता हैं । कुछ दिनो तक गौमूत्र के सेवन करने से धमनियो में रक्त का दबाव कम होने से हृदयरोग दूर होता हैं । इसके सेवन से भूख बढ़ती हैं तथा पेशाव खुलकर होता हैं । यह पुराने गुर्दा रोग (किडनी फेल्युअर) की उत्तम औषधि हैं ।
                                                (डॉ. काफोड हेमिल्टन, अमेरिका)
गाय का गोबर
गाय के गोबर में १६ प्रकार के खनिज तत्व होते है । जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, लौह, जस्ता, ताम्र, बोरेक्स, सल्फेट, सोडियम, गंधक आदि । अखिल भारतीय कृषि पुरस्कार से पुरस्कृत श्री नारायण पाडरीपाडे ने नडेप खाद का आविष्कार करके सिद्ध किया हैं कि देशी गाय के एक क्विंटल गोबर से ३० क्विंटल जैविक खाद ४ महीने में बनाई जा सकती है । उसका मूल्य कम-से-कम तीन हजार रुपये होता हैं । यह गोबर आप उस बूढ़ी और अनुपयोगी गाय से भी प्राप्त कर सकते हैं जो वर्ष में केवल ३००० रुपये का चारा खाती हैं ।    

12 वोल्ट की नई बैटरी में गौमूत्र या गोबर भरकर तांबा तथा कि प्लेटें डालकर उस सर्किट से विद्युत घड़ी, कम वोल्ट का बल्ब, ट्रांजिस्टर, टैप रिकार्डर तथा छोटी टीवी चलाने में सफलता प्राप्त कि जा चुकी है । 
                    (निहालचंद तनेजा, जय श्री कृष्ण प्रयोगशाला, ग्राम सहार, कानपुर)

गाय के ताजे गोबर से टीवी तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाता हैं
                      (प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई.बीगेड, इटली)

गाय के गोबर में हैज़े के कीटाणुओं को मारने की अद्भुत क्षमता है ।
(प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. किंग, चेन्नई)

हरों से निकालने वाले कचरे पर गोबर के घोल को डालने से दुर्गंध पैदा नहीं होती तथा कचरा खाद के रूप मे परिवर्तित हो जाता है ।
                          (डॉ. कांति सेन सर्राफ, मुंबई)
अमेरिका के वेज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के पानी को मिलकर एक इस तरह का उत्प्रेरक बनाया है जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी भरी हो जाती है ।

गाय आय का साधन भी है, आरोग्यदात्री भी है। अतः गाय मारने योग्य नहीं है बल्कि हर प्रकार से गोवंश की रक्षा व उसका संवर्धन अत्यन्त आवश्यक है।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अगस्त 2011, पृष्ठ संख्या 10, अंक 170