रुस्तम
कोबिल
बीबीसी
उज़बेक सेवा
गुरुवार, 22 मार्च,
2012
मार्च में ठंडे शुक्रवार को मॉस्को के बीचो-बीच गुजरने वाली बोलशाया तातरस्काया स्ट्रीट पर सन्नाटा पसरा है. यह सड़क रूस की राजधानी की सबसे पुरानी मस्जिद के पास से गुजरती है.
मॉस्को में
आजकल 20 लाख से
अधिक मुसलमान
रहते और काम
करते हैं. यह
अब यूरोप में
मुस्लिम
लोगों के सबसे
बड़े शहरों
में से एक
हो
गया है और कुछ
मस्जिदें
इतनी बड़ी
आबादी के लिए
काफी नहीं है.
जुमे की
नमाज के दौरान
इस ऐतिहासिक
इमारत में लोगों
का जमघट लगा
है और हजारों
लोग खुले में बर्फबारी
के बीच नमाज
पढ़ रहे हैं.
ज्यादातर
मुसलमान मध्य
एशिया के
पूर्व सोवियत गणराज्यों
से आए युवा
आप्रवासी हैं.
गरीबी और
संघर्ष ने
उन्हें रूस
में नई जिंदगी
शुरू करने के
लिए मजबूर
किया है. लाखों
उजबेक, ताजिक
और किरगिज लोग मॉस्को
में नौकरियाँ
कर रहे हैं.
उजबेकिस्तान
से आए युवा
अलबेक कहते
हैं, "हम इस बात
के आभारी हैं
कि मॉस्को में
इतनी मस्जिदें
हैं." लेकिन
दूसरे कुछ लोग कहते
हैं कि
प्रशासन
मुसलमानों की
जरूरतों की
अनदेखी कर रहा
है.
शहर की
ऐतिहासिक
मस्जिद के
इमाम हसन
फकरित्दिनोव का
मानना है कि
मौजूदा
सुविधाएं
पर्याप्त नहीं
हैं. वे कहते
हैं, "हम प्रशासन
से और
मस्जिदें
बनाने की
अनुमति माँग
रहे हैं लेकिन
वह हमारी बात नहीं
मान रहे हैं. इसका
नतीजा यह हुआ
है कि लोगों
को अब खुले
में बारिश और बर्फ
के बीच नमाज
पढ़नी पड़ रही
है."
नमाजियों के लिए जगह की कमी
मॉस्को की
पुरानी ततार
मस्जिद की अब
नई इमारत बनाई
जा रही है
लेकिन इसके
बावजूद भी सभी
नमाजियों के
लिए यह जगह कम
पड़ रही है.
जिन
मॉस्कोवासियों
से मैंने बात
की, उनकी आप्रवासियों
द्वारा शहर
में लाए गए
बदलाव के बारे
में अलग अलग
राय है.
पुरानी
मस्जिद के पास
टहल रही दो
युवा महिलाएं मुझे
बताती हैं, "मॉस्को
बढ़ रहा है और
ज्यादा से
ज्यादा आप्रवासियों
को आकर्षित
कर रहा है
जिसमें से कई
मुसलमान हैं. रूस
में गिरजाघर
भी बनाए जा रहे
हैं इसलिए
मुसलमानों को
भी मस्जिद
बनाने से नहीं
रोका जाना
चाहिए."
लेकिन दूसरे
लोगों को डर
है कि अधिक
विदेशियों के
होने की वजह
से रूस की
संस्कृति और
जीवन शैली बदल
रही है.
एक
राष्ट्रीय
संगठन
रूसावेट के
कार्यकर्ता यूरी गोर्सकी
कहते हैं, "लोग
मजाक कर रहे
हैं कि मॉस्को
अब
मॉस्कोवाबाद
बन गया है. अब
सड़कों पर
स्लाविक
देशों के
चेहरे नहीं दिखाई
देते. हमें
स्लाविक देशों
से आए लोगों
से आपत्ति
नहीं है लेकिन
हमें इन
मुसलमानों को
रोकना होगा."
पहले रूस
में मुसलमान
आप्रवासियों
पर हमले हुआ करते
थे लेकिन अब
इनकी संख्या
में काफी कमी
आई है. रूसी
मानवाधिकार
संगठन सोवा
के अनुसार
जातीय हमलों
में 2011 के दौरान
सात लोगों की
मौत हुई है और 28 लोग
घायल हुए हैं
जबकि 2008 में इन
हमलों में
मरने वालों की
संख्या 57 थी.
बाहर से आए
अधिकतर लोगों
को वह काम
करने में कोई संकोच
नहीं है जिसे
स्थानीय लोग
करने में
हिचकिचाते
हैं. पूरे शहर
में हलाल दुकानों
और कैफे का
जाल सा बिछ
गया है.
हलाल समोसा
इनमें महंगे
रेस्तराँ से
ले कर, जहां एक
बार के खाने
की कीमत दस
हजार रुपए तक
है, सस्ते टेक
अवे भी शामिल
हैं जहाँ मध्य एशियाई
लोग तंदूरों
में रोटियाँ
सेकते हैं और
समोसे बनाते
हैं. हलाल
समोसा रूस
का सबसे
लोकप्रिय टेक
अवे खाना बन
गया है.
रूस में
बड़ी संख्या
में लोग
इस्लाम धर्म
अपना रहे हैं. इनमें
से एक अली
व्याचिसलाव
हैं जो पहले
कट्टरपंथी
पादरी हुआ
करते थे और
क्रिसमस को
सार्वजनिक
अवकाश बनाने
की मुहिम चला
रहे थे.
बारह वर्ष
पूर्व
उन्होंने
मुस्लिम धर्म
अपना लिया और
अब वह मॉस्को
में मुस्लिम
सपोर्ट
केंद्र चलाते
हैं जो धर्म
बदलने वाले नए
रूसियों को
सलाह देते हैं.
इस केंद्र
में काम करने
वाली आएशा
लरीसा कहती हैं
कि उन्होंने 10
हजार
से अधिक धर्म
बदलने वाली
मुस्लिम
महिलाओं को
पंजीकृत किया
है.
इस्लाम
हमेशा से ही
रूस का दूसरा
सबसे धर्म रहा
है लेकिन वह
इतना
दृष्टिगोचर
कभी नहीं रहा
जितना आज है
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