(ये जानकारी सिर्फ इसलिए दी जा
रही है जिससे की आपको महाभारत
आसानी से और अच्छे से आ सके !)
महाभारत
हमारे हिन्दू धर्म का एक महान महाकाव्य है ! हम में से बहुत ही कम लोग महाभारत के
बारे में समझ पाते हैं – यहाँ तक की महाभारत
के किरदारों और महाभारत के युद्ध के बारे में ज्यादातर लोगों का ज्ञान बहुत
अल्प है ! शायद यह यह लेख आपकी कुछ मदद कर सके -
महाभारत में पंडू
पुत्रों को ही पांच पांडव और ध्रतराष्ट्र के सौ पुत्रों को कौरवों के नाम से जाना
जाता है ! इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहन भी
थी जिसका नाम "दुशाला" था, जिसका विवाह "जयद्रथ" से हुआ
था !
पंडू पुत्र पांडवों के नाम ये थे –
1.
युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन 4. नकुल 5. सहदेव
पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं व नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।
धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र जो कौरव कहलाए, के नाम हैं -
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह 4. दुःशल 5. जलसंघ
6. सम 7. सह 8. विंद 9. अनुविंद 10. दुर्धर्ष
11. सुबाहु 12. दुषप्रधर्षण 13. दुर्मर्षण 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान 19. सुलोचन 20. चित्र
21. उपचित्र 22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन 25. दुर्मद
26. दुर्विगाह 27. विवित्सु 28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द 32. उपनन्द 33. चित्रबाण 34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा
36. दुर्विमोचन 37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल
41. भीमवेग 42. भीमबल 43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर 49. चित्रायुध 50. निषंगी
51. पाशी 52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र 55. सोमकीर्ति
56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी 64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष 68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु 74. बह्वाशी 75. नागदत्त
76. उग्रशायी 77. कवचि 78. क्रथन 79. कुण्डी 80. भीमविक्र
81. धनुर्धर 82. वीरबाहु 83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य 88. कुण्डभेदी 89. विरवि 90. चित्रकुण्डल
91. प्रधम 92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा 94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात 97. कनकध्वज 98. कुण्डाशी 99. विरज 100. युयुत्सु
पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं व नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।
धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र जो कौरव कहलाए, के नाम हैं -
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह 4. दुःशल 5. जलसंघ
6. सम 7. सह 8. विंद 9. अनुविंद 10. दुर्धर्ष
11. सुबाहु 12. दुषप्रधर्षण 13. दुर्मर्षण 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान 19. सुलोचन 20. चित्र
21. उपचित्र 22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन 25. दुर्मद
26. दुर्विगाह 27. विवित्सु 28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द 32. उपनन्द 33. चित्रबाण 34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा
36. दुर्विमोचन 37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल
41. भीमवेग 42. भीमबल 43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर 49. चित्रायुध 50. निषंगी
51. पाशी 52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र 55. सोमकीर्ति
56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी 64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष 68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु 74. बह्वाशी 75. नागदत्त
76. उग्रशायी 77. कवचि 78. क्रथन 79. कुण्डी 80. भीमविक्र
81. धनुर्धर 82. वीरबाहु 83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य 88. कुण्डभेदी 89. विरवि 90. चित्रकुण्डल
91. प्रधम 92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा 94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात 97. कनकध्वज 98. कुण्डाशी 99. विरज 100. युयुत्सु
पांड्वो व कौरव के मध्य हुए युद्ध को महाभारत की संज्ञा दी जाती है
। पाण्डवो के पास सात अक्षौहिणी तथा कौरवो के पास ग्यारह अक्षौहिणी सेना थी । एक
अक्षौहिणी मे- 1,09,350 पैदल, 65,610 घोड़े, 21,870 रथ तथा 21,870 हाथी होते है । इस प्रकार पाण्डवो के पास –
7,65,750 पैदल, 4,59,270
घोड़े, 1,53,090 रथ तथा
1,53,090 हाथी थे । कौरवो के पास- 12,02,850 पैदल, 7,21,710 घोड़े, 2,40,570 रथ तथा 2,40,570
हाथी थे । इस प्रकार की कुल सेना मे 19,68,300 पैदल 11,80,980
घोड़े, 3,93,660 रथ तथा
3,93,660 हाथी थे ।
महाभारत के युद्ध मे अट्ठारह का विशेष महत्व है । इस युद्ध मे
अट्ठारह महारथी तथा अट्ठारह अक्षौहिणी सेना थी तथा यह युद्ध अट्ठारह दिन चला था ।
पाण्डवो के पास सात महारथी अर्जुन, भीम, सात्यकि, धृष्टधुम्न, द्रुपद, विराट, तथा युधिष्ठिर थे । इसी प्रकार कौरवो के पास ग्यारह महारथी- भीष्म, द्रोण, कर्ण, कृप, शल्य, अश्वत्थामा, जयद्रथ, कृतवर्मा, भूरीश्रवा, भगदत्त
तथा दुर्योधन
थे । महाभारत मेअट्ठारह ही पर्व है ।
प्रथम दिन के युद्ध - मे युधिष्ठिर के क्रियाकलापों (भक्ति) के कारण
धृतराष्ट का पुत्र युयुत्सु पाण्डवो के सात आ मिला तथा श्रीकृष्ण ने अर्जुन को
गीता का उपदेश दिया तथा अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध कि घोषण की । दस
हजार सैनिको की मृत्यु इस दिन हुई । भीम ने दु;शासन पर आक्रमण किया । अभीमन्यु ने भीष्म का धनुष
तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया तथा शल्य ने राजा विराट के पुत्र उत्तर का वध किया ।
दूसरे दिन का युद्ध - अर्जुन तथा भीष्म ,
धृष्टधुम्न तथा द्रोण के मध्य युद्ध हुआ । सात्यकि ने भीष्म के सारथि को घायल कर
दिया ।
तीसरे दिन का युद्ध - कौरवो ने गरुण जैसा तथा पाण्डवो ने
अर्द्धचंद्राकार मोर्चाबंदी बनाया । कौरवो की ओर से दुर्योधन तथा पाण्डवो की ओर से
भीम तथा अर्जुन सुरक्षा कर रहे थे । भीम के बाण से दुर्योधन अचेत हो गया उसका
सारथीरथ को भगा ले गया । भीम ने सैकङो सैनिको को मार गिराया ।
चौथे दिन का युद्ध - कौरव पक्ष को भारी नुकसान हुआ । भीम ने दुर्योधन के कई भाई मार
डाले ।
पाँचवे दिन का युद्ध - किसी
भी पक्ष को भारी नुकसान हुआ , दोनों पक्षो के सैनिको का वध ।
छठे दिन का युद्ध - कौरवो ने क्रोंचव्यूह तथा पाण्डवो ने
मकरवव्यूह के आकार मे सेना लगायी । द्रौण का सारथी मारा गया ।
सातवे दिन का युद्ध - कौरवो द्वारा मण्डलाकार व्यूह की रचना । एक
हाथी के पास सात रथ, एक रथ की रक्षार्थ सात अश्वारोही, एक अश्वारोही की रक्षार्थ सात धनुर्धर तथा एक धनुर्धर की रक्षार्थ दस
सैनिक लगाये गये । सेना के मध्य दुर्योधन था । पाण्डवो ने व्रजव्यूह की रचना की ।
दसो
मोर्चो पर घमासान युद्ध हुआ ।
आठवे दिन का युद्ध - कौरवो ने कछुआ व्यूह तो पांडवों ने तीन शिखरों
बाला व्यूह रचा । भीम ने दुर्योधन के आठ भाइयों को मार डाला । अर्जुन की दूसरी
पत्नी उलूपी के पुत्र इरावान का बकासुर के पुत्र आष्र्र्यश्रंग के द्वारा बध किया
गया । घटोत्कच द्वारा दुर्योधन पर शक्ति का प्रयोग परंतु बंगनरेश ने दुर्योधन को
हटा कर शक्ति का प्रहार स्वयं के ऊपर ले लिया तथा बंगनरेश की मृत्यु हो गयी ।
नवें दिन का युद्ध - भीष्म द्वारा घायल अर्जुन तथा उसके जर्जर रथ को
देख कर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्म पर झपटे । पांडवों तथा कृष्ण के अनुरोध
पर भीष्म ने अपनी म्रत्यु के बारे मे बताया ।
दसबें दिन का युद्ध - युद्धक्षेत्र मे शिखंडी को सामने डटा देखकर
भीष्म ने अपने अस्त्र त्याग दिये । अर्जुन ने अपने वाणों से भीष्म को शर शय्या पर
लिटा दिया । भीष्म ने बताया की वह सूर्य के उत्तरायन होने पर शरीर छोड़ेंगे
क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है ।
ग्यारवे दिन का युद्ध - द्रोण सेनापति बनाये गए । सुशर्मा तथा अर्जुन, शल्य
तथा भीम, सात्यकी तथा कर्ण और सहदेव तथा शकुनी के मध्य युद्ध
हुआ । नकुल, धर्मराज के साथ थे अर्जुन भी वापस धर्मराज के
पास आ गए । इस प्रकार कौरव युधिष्टर को नहीं पकड़ सके ।
बारहवे दिन का युद्ध - त्रिगर्त, अर्जुन को दूर ले जाते हैं । सत्यजित, युधिष्टर के रक्षक थे । वापस लोटने पर अर्जुन ने प्राग्ज्येतिषपुर के
राजा भगदत्त को अर्धचंद्र बाण से मार डाला । सत्यजित ने द्रोण के रथ का पहिया काटा
और उसके घोड़े मार डाले । द्रोण ने अर्धचंद्र बाण के द्वारा सत्यजित का सिर काट
लिया ।
तरहवें दिन का युद्ध - कौरवों ने चक्रव्यहु की रचना की । त्रिगर्त
अर्जुन को दूर ले गये । सप्तमहारथीओ द्वारा अभिमन्यु का बध किया । कर्ण के कहने पर
सातों महारथियों कर्ण, जयद्रथ, द्रोण, अश्वत्थामा, दुर्योधन,
लक्ष्मण तथा शकुनी ने एक साथ अभिमन्यु पर आक्रमण किया । लक्ष्मण ने जो गदा
अभिमन्यु के सिर पर मारी वही गदा अभिमन्यु ने लक्ष्मण के फेक कर मारी दोनों की उसी
समय मृत्यु हो गयी । अर्जुन ने त्रिगर्तराज सुशर्मा तथा संसप्तकों को मार डाला ।
जयद्रथ को सूर्यास्त से पूर्व मारने की अर्जुन ने प्रतिज्ञा की ।
चौदहवे दिन का युद्ध - भूरिश्रवा, सात्यकि को मारना चाहता था तभी अर्जुन ने
भूरिश्र्वा के हाथ काट दिये, वह प्रथ्वी पर गिर पड़ा तभी
सात्यकि ने उसका सिर काट लिया । अर्जुन के आत्मदाह हेतु चिता तैयार की गई । जयद्रथ
भी देखने आया, उसी समय श्री कृष्ण की कृपा से सूर्य पुनः
निकाल आया तथा कृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने जयद्रथ का बध कर दिया । रात्री मे
घटोत्चक द्वारा कौरवों पर आक्रमण, कर्ण ने अमोघ शक्ति के
द्वारा घटोत्चक का बध किया ।
पंद्रहवे दिन का युद्ध - द्रौण द्वारा द्रुपद
तथा विराट का वध । अवन्तिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध ।
धृष्टधुम्न ने द्रौण का सर काटा ।
सोलहवे दिन का युद्ध - कौरवो की ओर से कर्ण सेनापति बनाया गया ।
सत्रहवे दिन का युद्ध - शल्य को कर्ण का सारथि बनाया गया । भीम द्वारा
गदायुद्ध मे दु:शासन का वध कर्ण तथा अर्जुन के मध्य युद्ध । कर्ण के रथ का पहिया
धसने पर श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन द्वारा कर्ण का वध ।
अट्ठारवे दिन का युद्ध - युधिष्ठिर द्वारा शल्य
का वध । दुर्योधन भागकर सरोवर के स्तम्भ मे जा छुपा । बलराम तीर्थ-यात्रा से वापस
आ गये तथा दुर्योधन को आशीर्वाद । गदायुद्ध मे भीम द्वारा दुर्योधन को अपंग बनाना
। कौरेवो के तीन योद्धा शेष- अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कृतवर्मा ।
अश्वत्थामा द्वारा पांडवो के वध की प्रतिज्ञा । सेना पति अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य
के कृतवर्मा द्वारा रात्री मे पांडव शिविर पर हमला । अश्वत्थामा द्वारा सभी
पांचालों-द्रोपदी के पांचों पुत्र, धृष्टधुम्न तथा शिखंडी
आदि वध । द्रोपदी के पांचों पुत्रो के कटे सर अश्वत्थामा ने दुर्योधन के सामने रख
दिये तभी दुर्योधन ने एक सर पर मुक्का मारा वह सर फूट गया । दुर्योधन सब कुछ समझ
गया व उसने अपने प्राण त्याग दिये ।
लेखक
- कमल कुमार राठौर
-----अच्छी संक्षिप्त महाभारत है...बधाई...
ReplyDelete----यह युद्ध वास्तव में ही विश्व-युद्ध...वर्ल्ड-वार था ...तथा यह एक आणविक---न्यूक्लियर युद्ध था, जिसमें खुलकर पृथ्वी के आणविक व न्यूक्लियर अस्त्रों का प्रयोग हुआ था...(घटोत्कच का युद्ध व कर्ण की अमोघ शक्ति इनका एक उदाहरण हैं| इसीलिये श्रीकृष्ण ने अपने महा-न्यूक्लियर शस्त्र चक्र का उपयोग नहीं किया)
---गीता में भी १८ अध्याय हैं...मूल पुराण भी १८ हैं...
"यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से ,
अब तक मगर है बाकी नामो-निशाँ हमारा |
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ,
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहां हमारा ||"..... कुछ तो बात है...यह समन्वयवादी, हर रंग योगी-भोगी संस्कृति...
महाभारत प्रथम विश्व युद्ध था, और अत्यंत विकसित समाज था|
ReplyDeleteवंशावली निरंतरता का प्रतीक होती है, अगर युधिष्टिर का वंश १७०० वर्ष तक चला तो महाभारत एक आदिवासी समुदाए की बीच का बहुत छोटा सा युद्ध था | वोह ऐसा समुदाय था जिसका कोइ विकास नहीं था|
ध्यान दे इसाई जबरदस्त धन खर्च कर रहे हैं, यह प्रमाणित करने के लिए पिरामिड, Indus Valley Civilization से जो प्रमाण मिले हैं, उसे महाभारत युद्ध से ना जुड़ने दिया जाय, और सबसे आसान तरीका है, की इस वंशावली को लोक प्रिये कर दो|
सत्य यह है की महाभारत प्रथम विश्व युद्ध था, और अत्यंत विकसित समाज था|
MAHABHARAT was fought as DHARM YUDH with KAURAVS favoring and accepting GENETIC ENGINEERING and HUMAN CLONING as DHARM, while PANDAVS rejecting the same and declaring NATURAL PROCESS OF CHILD REARING as DHARM....MAHABHARAT was the FIRST WORLD WAR
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