Wednesday, February 25, 2015

मदर टेरेसा : कर्म से नहीं बल्कि वेटिकन पोषित मीडिया द्वारा घोषित संत


माननीय भागवत जी ने क्या गलत कह दिया ये कह कर की मदर टेरेसा सेवा के नाम पर धर्म परिवर्तन कराया करती थी, अरे ये तो जग जाहिर है ! इतने हो हल्ला का कारण सिर्फ ये है की ये खुलासा किसी साम्प्रदायिक व्यक्ति ने किया है !  जबकि यूरोप की मीडिया पहले से ये खुलासा करती आई है !

कनाडा की मोंट्रियाल यूनिवर्सिटी के सर्ज लैरिवी, जेनेवीव चेनार्ड तथा ओटावा यूनिवर्सिटी के काइरोल सेनेचाल इन शोधोकर्ताओं ने मदर टेरेसा पर किए गए शोध के द्वारा ईसाई सेवाभाव के खोखलेपन को उजागर किया है । इनकी  रिपोर्ट को विश्वभर के समाचार-पत्रों में छापा गया है ! जिसमे कहा गया है की मदर टेरेसा संत नहीं थी । शोध–टीम का नेतृत्व कर रहे प्रो॰ लेरिवी ने कहा : नैतिकता पर होनेवाली एक विचारगोष्ठि के लिए परोपकारिता के उदाहरणों की खोज करते हुए हमारी नजर कैथोलिक चर्च की उस महिला के जीवन व क्रियाकलापो पर पड़ी, जो मदर टेरेसा के नाम से जानी जाती हैं और जिसका वास्तविक नाम एग्नेस गोंज्क्झा था। हमारी उत्सुकता वढ़ गयी तथा हम और अधिक अनुसंधान करने के लिए प्रेरित हुये ।

मदर टेरेसा की छवि असरदार मीडिया-प्रचार के कारण थी, न कि किसी अन्य कारण से । वेटिकन चर्च ने मदर टेरेसा को जो संत घोषित किया जिससे वह खाली होते हुए चर्चों की ओर लोगों को आकर्षित कर सके । वेटिकन पोषित मीडिया ने रोगियों की सेवा के उनके संदेहास्पद ढंग, रोगियों की पीड़ा कम करने के स्थान पर उस पर गौरव अनुभव करने की विचित्र प्रवृत्ति, उनके संदिग्ध प्रकार के राजनेताओं से संबंध और उनके द्वारा एकत्रित प्रचुर धनराशि के संशयास्पद उपयोग – इन सभी तथ्यों को हमेशा नजरअंदाज किया ।

किसी को संत घोषित करने के लिए एक चमत्कार का होना आवश्यक माना जाता हैं । मदर टेरेसा के चमत्कार का पर्दाफाश करते हुए साइंस एंड रेशनलिस्ट एसोसिएशन आंफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी श्री प्रबीर घोष ने कहा कि एक आदिवासी महिला मोनिका बेसरा को पेट में टीबी का ट्यूमर था और उसने मदर की प्रार्थना की और मदर का फोटो पेट पर रखा, जिससे वह स्वस्थ हो गयी यह बात बकवास है । उस महिला के चिकित्सक डांक्टर तरुण कुमार विश्वास और डांक्टर रंजन मुस्ताफी ने कहा कि उसने 9 महीने तक टीबी का उपचार किया था, जिससे वह महिला स्वस्थ हुई थी ।
मदर टेरेसा पीड़ितो के लिए प्रार्थना करने में उदार किन्तु उनके नाम पर एकत्रित अरबों रुपयों को खर्च करने में कंजूस थी । अनेक बार आयी बाढ़ जैसी आपदाओं तथा भोपाल गैस त्रासदी के समय उन्होने प्रार्थनाएँ तो बहुत की लेकिन अपनी फाउंडेशन से कोई आर्थिक सहायता प्रदान नहीं की । उनके द्वारा चलाये जा रहे अस्पतालो की हालत दयनीय पायी गयी ।

मदर टेरेसा के 100 से अधिक देशो में 517 मिशन यानी मरणासन्न व्यक्तियों के घर (Homes for the dying) थे । गरीब रोंगी इन मिशनों में आते थे । कोलकाता में इन मिशनो की जांच करनेवाले डांक्टरों ने पाया कि उन रोगियों में से दो-तिहाई की ही डांक्टरी इलाज मिलने की आशा पूर्ण हो पाती थी, शेष एक – तिहाई के अभाव में मृत्यु का ही इंतजार करते थे । डांक्टरों ने पाया कि इन मिशनों में सफाई का अभाव, यहाँ तक कि गंदगी थी, सेवा – शुश्रूषा, भोजन तथा दर्दनाशक दवाइयों का अभाव था । पूर्व में भी चिकित्सा – जगत के सुप्रतिष्ठित जर्नलों (पत्रिकाओं) – ब्रिटिश मेडिकल जर्नल व लैन्सेट ने इन मरणासन्न व्यक्तियों के घरो की दुर्दशा को उजागर किया था । लैन्सेट ने संपादकीय में यहाँ तक कहा कि ठीक हो सकनेवाले रोगियों को भी लाइलाज रोगियों के साथ रखा जाता था और वे संक्रमण तथा इलाज न होने से मर जाते थे ।

इन सबके लिए धन का अभाव जैसा कोई कारण नहीं था । प्रो॰ लेरिवी कहते है कि अरवों रुपये मिशनरिज आंफ चैरिटी के अनेकों बैंक खातो में जमा किए जाते थे किन्तु अधिकांश खाते गुप्त रखे जाते थे, सवाल उठाता है कि गरीबों के लिए इकट्ठा किये गये करोड़ो डालरों जाते कहाँ हैं ? पत्रकार क्रिस्टोफर हिचेस के अनुसार धन था उपयोग मिशनरी गतिविधियों के लिए होता था

शोधकर्ताओं के अनुसार धन कहीं से भी आये, टेरेसा उसका स्वागत करती थी ।  हैती (Haiti) देश की भ्रष्ट व तानशाह सरकार से प्रशस्ति-पत्र तथा धन प्राप्त करने में उन्हे कोई संकोच नहीं हुआ । मदर टेरेसा ने चार्ल्स कीटिंग नमक व्यक्ति से, जो कि कीटिंग फाइव स्कैंडल नाम से जानी जानेवाली धोखाधड़ी में लिप्त था, जिसमे गरीब लोगों लो लूटा गया था, 12.50 लाख डालर (6.75 करोड़ रू.) लिए और उसके गिरफ्तार होने से पूर्व तथा उसके बाद उसको समर्थन दिया ।
क्रौस पर चढ़े जीसस की तरह बीमार भी सहे पीड़ा ............मदर टेरेसा

जो लोग मदर टेरेसा को निर्धनों का मसीहा, गरीबों की मददगार, दया-करुणा की प्रतिमूर्ति कहते हैं, वे मदर टेरेसा का असली चेहरा देखकर तो सहम ही जाएंगे – शोधकर्ताओं के अनुसार मदर टेरेसा को गरीब – पीड़ितों को तड़तपे देखकर सुखद अनुभूति होती थी । क्रिस्टोफर हिचेंस की आलोचना का प्रत्युत्तर में मदर टेरेसा ने कहा था : निर्धन लोगों द्वारा अपने दुर्भाग्य को स्वीकार कर ईसा मसीह के समान पीड़ा सहन करने में एक सुंदरता है। इनके पीड़ा सहन करने से विश्व को लाभ होता है । है न वे सिर पैर की बात ! हिचेंस बताते हैं कि एक इंटरव्यू में मंद मुस्कान के साथ मदर टेरेसा कैमरे के सामने कहती हैं कि मैंने उस रोगी से कहा :  तुम क्रौस पर चढ़े जीसस की तरह पीड़ा सह रही हो, इसलिए जीसस जरूर तुम्हें चुंबन कर रहे होंगे ।टेरेसा की इस मानसिकता का प्रत्यक्ष परिणाम दर्शानेवाला तथ्य पेश करते हुए रेशनेलिस्ट इन्टरनेशनल के अध्यक्ष सनल एडामारुकु लिखते है : वहाँ रोगियों को दवा के अभावमें खुले घावों में रेंगते कीड़ों से होनेवाली पीड़ा से चीखते हुए सुना जा सकता था ।
शोधकर्ताओं के अनुसार जब खुद मदर टेरेसा के इलाज की बारी आयी तो टेरेसा ने अपना इलाज आधुनिकतम अमेरिकी अस्पताल में करवाया ।

यहाँ पर ये भी ध्यान करने योग्य है की मदर टेरेसा की प्राथना व हाथ रखने से लोग वाकई ठीक होते हैं तो उन्होंने अपना इलाज अमेरिका के आधुनिक अस्पताल में क्यूँ कराया ! दूसरा ये की यदि मदर टेरेसा वाकई कोई जादुई संत थी तो उन्होंने जॉन पॉल को क्यूँ ठीक नहीं किया जो पारकिसन्स डिससिस से पीडित था 20 साल से !

इस प्रकार ईसाई मिशनरियों के सेवाभाव के खोखलेपन के साथ उनके वैचारिक दोमुंहेपन एवं विकृत अंधश्रद्धा को भी शोधकर्ताओं ने दुनिया के सामने रख दिया है ।

ईसाई धर्म में जीवित अवस्था में किसी को संत नहीं माना जाता । प्रारम्भ में तो अन्य धर्म के साथ युद्ध में जो शहीद हो गये थे, उनको ईसाई लोंग संत मानते थे । बाद में अन्य विशिष्ट मिशनरियों एवं अन्य कार्यकर्ताओं का पोप के द्वारा उनके देहांत के बाद उनके ईश्वरीय प्रेम की प्राप्ति का दावा किसी बिशपके द्वारा करने पर और उस पर विवाद करने के बाद कम–से–कम एक चमत्कार के आधार पर संत धोषित करने की प्रथा चल पड़ी । इसलिए ईसाई संतो को कोई आध्यात्मिक महापुरुष नहीं मान सकते । जिनको ईश्वर प्राप्त नहीं हुआ है ऐसे पोप के द्वारा जिसे संत घोषित किया जाता हो वह महापुरुष नहीं हो सकता । इस प्रकार सनातन धर्म के संतो में और ईसाई संतो में बड़ा अंतर है । फिर भी भारत के मीडिया द्वारा विधर्मी पाखंडियों को आदरणीय संत के रूप में प्रचारित करने और लोक-कल्याण में रत भारत के महान संतो को आपराधिक प्रवृत्तियों में संलग्न बताकर बदनाम करने का एकमात्र कारण यह है कि अधिकांश भारतीय मीडिया ईसाई मिशनरियों के हाथ में है और वे लाखो-करोड़ो डालरों लुटाकर भी हिन्दू धर्म को बदनाम करते है


(संदर्भ : DNA, Times of india, www.wsfa.com , राजीव दिक्सित जी, etc)